राम ने क्यों की थी माँ दुर्गा की पूजा? शारदीय नवरात्रि की पौराणिक कथा

भगवान राम ने माँ दुर्गा की पूजा

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का गहरा संबंध पौराणिक कथाओं और इतिहास से है। शारदीय नवरात्रि, जो देवी दुर्गा की उपासना का महापर्व है, इसकी जड़ें भगवान राम की लंका विजय से जुड़ी हैं। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अटूट भक्ति, त्याग और धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है। आइए, जानते हैं कि कैसे श्रीराम की शक्ति-उपासना ने इस महान पर्व की नींव रखी।

रावण का अहंकार और राम का वनवास

जब भगवान राम, अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे, तब लंकापति रावण ने छल से माता सीता का हरण कर लिया। रावण केवल एक क्रूर राक्षस ही नहीं, बल्कि भगवान शिव और शक्ति का परम उपासक भी था। उसने अपनी तपस्या से अभेद्य शक्तियाँ प्राप्त कर रखी थीं, जिसके कारण उसे हराना असंभव लग रहा था।

जब भगवान राम वानर-सेना के साथ समुद्र पार कर लंका पहुँचे, तब रावण के भाई विभीषण ने राम को परामर्श दिया। विभीषण ने बताया कि रावण का वध केवल तभी संभव है जब आप स्वयं शक्ति की आराधना करें, क्योंकि बिना देवी की कृपा के कोई भी महाशक्तिशाली शत्रु पराजित नहीं हो सकता।

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अकाल बोधन: निर्धारित समय से परे की पूजा

शास्त्रों के अनुसार, देवी की पूजा का निर्धारित समय चैत्र मास (वसंत ऋतु) होता है, जिसे चैत्र नवरात्रि कहते हैं। लेकिन विभीषण ने राम से कहा कि यदि तत्काल विजय चाहते हैं तो उन्हें शारदीय मास (शरद ऋतु) में, यानी निर्धारित समय से पहले देवी का आह्वान कर उनका पूजन करना होगा। इसी पूजा को “अकाल-बोधन” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “असमय की पूजा”

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के लंका कांड में इस प्रसंग का संकेत देते हुए लिखा है:

“सिय बिनु राम न होहिं उरगारी। कीन्हि पूजा महा भवानी॥” (लंका कांड, मानस)

यह चौपाई बताती है कि माता सीता के बिना राम का हृदय अशांत था, और इसी अशांति को दूर करने के लिए उन्होंने महाभवानी की पूजा की। यहीं से शारदीय नवरात्रि की परंपरा का आरंभ हुआ।

108 नीलकमल और राम की भक्ति

रामचरितमानस और अन्य पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए शारदीय नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की आराधना करने का संकल्प लिया। इस पूजा के लिए उन्होंने 108 नीलकमल अर्पित करने का निश्चय किया।

जब पूजा आरंभ हुई, तो राम एक-एक करके कमल चढ़ा रहे थे। लेकिन रावण, अपनी मायावी शक्तियों का उपयोग करके, एक नीलकमल को अदृश्य कर देता है, ताकि राम का संकल्प अधूरा रह जाए और उनकी पूजा सफल न हो।

जब राम ने अंतिम कमल चढ़ाने का समय आया, तो उन्होंने देखा कि कमल की संख्या 107 ही है। यह देखकर वे चिंतित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं उनके संकल्प में कोई त्रुटि तो नहीं रह गई।

तब उन्हें अपनी माँ की कही बात याद आती है, जिसमें वह राम को ‘कमल-नयन’ यानी ‘कमल जैसे नेत्रों वाले’ कहती थीं। इसी विचार से प्रेरित होकर, राम ने सोचा कि यदि एक पुष्प कम है, तो वे अपने नेत्र, जो कमल के समान हैं, उसे ही देवी को अर्पित कर देंगे।

यह सोचकर, राम ने बिना किसी संकोच के अपने तरकश से बाण निकाला और अपने एक नेत्र को निकालने के लिए तैयार हो गए।

जैसे ही राम ने यह अद्भुत त्याग करने का निश्चय किया, देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हो गईं। माँ ने राम का हाथ पकड़ लिया और उन्हें ऐसा करने से रोका।

माँ दुर्गा ने कहा: “राम! तुम्हारी भक्ति ही मेरे लिए 108वें पुष्प के समान है। तुम्हारी यह निस्वार्थ भक्ति और त्याग ही तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है। मैं तुम्हारी इस अद्भुत साधना से अत्यंत प्रसन्न हूँ।”

इसके बाद, देवी दुर्गा ने राम को रावण पर विजय का आशीर्वाद दिया। इस घटना के बाद, राम ने दशमी के दिन रावण का वध किया और धर्म की विजय हुई। इसी कारण दशमी को विजयादशमी भी कहा जाता है।

दशमी का महत्व और रावण-वध

माँ दुर्गा के आशीर्वाद से श्रीराम ने दशमी के दिन रावण का वध किया। इसीलिए उस दिन को विजयादशमी या दशहरा कहा जाता है।

शास्त्रीय प्रमाण

रामचरितमानस (लंका कांड)

तुलसीदास जी ने संकेत दिया है कि श्रीराम ने देवी की पूजा की थी:

“सिय बिनु राम न होहि उरगारी।
कीन्हहि पूजा महा भवानी॥”
(लंका कांड, मानस)

देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती)

देवी महात्म्य में देवी का यह श्लोक राम की आराधना का प्रमाण है:

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

श्रीराम ने इन नामों का जप किया और शक्ति की कृपा प्राप्त की।

वाल्मीकि रामायण का संकेत

वाल्मीकि रामायण (युद्ध कांड, अध्याय 103-105) में राम के रावण-वध से पहले देवी की स्तुति का प्रसंग मिलता है, जिसमें इंद्र और अन्य देवताओं ने भी देवी से प्रार्थना की।

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