माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर वध | शारदीय नवरात्रि की मूल कथा

शारदीय नवरात्रि का पर्व केवल नौ दिनों की पूजा-अर्चना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सनातन कथा का स्मरण कराता है जिसमें नारी शक्ति और धर्म की विजय का उद्घोष होता है। यह कथा है महिषासुर नामक महाबलशाली दैत्य और माँ दुर्गा के बीच हुए भयंकर युद्ध की। दुर्गा सप्तशती और अन्य पुराणों में वर्णित यह कथा बताती है कि कैसे एक क्रूर और अहंकारी राक्षस का अंत करने के लिए स्वयं शक्ति को प्रकट होना पड़ा।
महिषासुर की तपस्या और वरदान
महिषासुर, दिति और कश्यप ऋषि के वंश का एक बलशाली राक्षस था। उसने हिमालय और मंदराचल पर्वतों पर घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी उसके सामने प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।
महिषासुर ने चतुराई से माँगा:
“हे पितामह! मेरा वध न तो किसी पुरुष से हो, न किसी देव से, न ही किसी असुर से। केवल स्त्री द्वारा ही मेरा वध हो सके।”
ब्रह्माजी ने ‘तथास्तु’ कह दिया।
महिषासुर के मन में यह विश्वास था कि स्त्री कभी उसका सामना नहीं कर पाएगी। वरदान पाते ही उसका अहंकार सातवें आसमान पर पहुँच गया।
महिषासुर का अत्याचार और देवताओं की व्यथा
वरदान प्राप्त कर महिषासुर ने तीनों लोकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। उसने देवलोक पर आक्रमण कर इन्द्र को अपदस्थ कर दिया और देवताओं को पृथ्वी पर भगा दिया। यज्ञ-वेदियाँ नष्ट कर दीं, वेद-शास्त्र जलाए गए, और धर्म का ह्रास होने लगा।
देवी महात्म्य (मार्कण्डेय पुराण, अध्याय 2, श्लोक 5-7):
स्वर्गं यदा तु विजयं न्यविन्दत् स महिषासुरः।
देवाश्च तत्र निर्जित्य त्रैलोक्ये चकार प्रभुत्वम्॥
अर्थ: जब महिषासुर ने स्वर्ग पर विजय प्राप्त की, तब देवताओं को परास्त कर उसने तीनों लोकों पर आधिपत्य कर लिया।
देवता अत्यंत दुःखी होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुँचे और अपने अपमान और कष्ट की व्यथा सुनाई।
शक्ति का प्राकट्य : आदिशक्ति दुर्गा
देवताओं के क्रोध और पीड़ा से उनके शरीर से एक अद्भुत तेज निकला। यह तेज मिलकर एक दिव्य रूप में बदल गया। वही थीं आदिशक्ति दुर्गा।
उनके दस भुजाएँ थीं, प्रत्येक हाथ में एक दिव्य आयुध। रूप अनुपम, नेत्र सूर्य समान, मुख चंद्रमा जैसा, और सिंहवाहिनी।
देवताओं ने उन्हें अपने-अपने शस्त्र दिए—
- शिव ने त्रिशूल,
- विष्णु ने चक्र,
- इन्द्र ने वज्र,
- वरुण ने शंख,
- अग्नि ने शक्ति,
- वायु ने धनुष-बाण,
- कुबेर ने गदा,
- यम ने कालदंड,
- समुद्र ने हार और वस्त्र,
- हिमालय ने सिंह वाहन।
दुर्गा और महिषासुर का युद्ध
देवी दुर्गा रणभूमि में पहुँचीं और सिंह की गर्जना से धरती-आकाश गूंज उठा। उनकी गर्जना सुनकर महिषासुर की सेना काँप उठी।
महिषासुर ने पहले देवी को विवाह का प्रस्ताव दिया और कहा—
“हे सुंदरी! तुम जैसी स्त्री को युद्ध करने की आवश्यकता नहीं, आओ, मेरी रानी बनो।”
देवी ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया—
“अधर्मी! मैं युद्धभूमि में आई हूँ धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का साथ देने के लिए नहीं।”
इसके बाद भीषण युद्ध शुरू हुआ।
नौ दिन का घमासान संग्राम
महिषासुर कभी भैंसे का रूप, कभी सिंह, कभी हाथी और कभी पुरुष का रूप धारण कर देवी को छलने का प्रयास करता रहा। देवी ने हर रूप में उसका सामना किया।
देवी महात्म्य (अध्याय 3, श्लोक 30):
सिंहः खरो रथो नागो द्विरदोऽश्वः स पातिवान्।
रथाश्वसदृशं रूपं युध्यते स्म पुनः पुनः॥
अर्थ: महिषासुर बार-बार अलग-अलग रूप धारण करके युद्ध करता रहा—सिंह, हाथी, घोड़ा और मनुष्य का रूप।
नौ दिन तक भीषण युद्ध चलता रहा। इस दौरान देवी के विविध रूपों की भी पूजा होती है, जिन्हें हम शारदीय नवरात्रि के नौ रूपों के रूप में पूजते हैं।
दसवें दिन महिषासुर वध
दसवें दिन महिषासुर भैंस का रूप धारण कर भीषण गर्जना करते हुए देवी पर टूट पड़ा।
देवी ने अपने चरण से उसे दबाया, भाले से वार किया और अंततः त्रिशूल से उसका वध कर दिया।
देवी महात्म्य (अध्याय 3, श्लोक 40-41):
सा तं पदेन समरे विनिर्भिद्य महिषासुरम्।
त्रिशूलेन च जग्राह ह्युरःस्थं चापि पीडितम्॥
अर्थ: रणभूमि में देवी ने महिषासुर को अपने चरणों से दबाया और त्रिशूल से उसके वक्ष को भेदकर उसका अंत कर दिया।
महिषासुर का वध होते ही तीनों लोकों में पुनः शांति स्थापित हुई। देवताओं ने स्तुति की और उन्हें महिषासुरमर्दिनी नाम से पुकारा।
महिषासुर वध और नवरात्रि का संबंध
इस घटना की स्मृति में ही शारदीय नवरात्रि मनाई जाती है।
- नौ दिन युद्ध और साधना के प्रतीक हैं।
- दसवाँ दिन विजय का प्रतीक है, जिसे विजयादशमी (दशहरा) कहा जाता है।
- यह कथा बताती है कि सत्य और धर्म की शक्ति कितनी भी देर से क्यों न हो, अंततः अधर्म और अहंकार पर विजय प्राप्त करती है।
महिषासुरमर्दिनी स्तुति
इस कथा के आधार पर एक प्रसिद्ध स्तोत्र रचा गया — “या देवी सर्वभूतेषु” और महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र।
श्लोक (देवी महात्म्य, 5.16):
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: वह देवी जो सभी प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है।