ॐ क्या है? जानिए ओंकार की उत्पत्ति, रहस्य और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का दिव्य ज्ञान

सनातन धर्म में ॐ (ओंकार) को ब्रह्मांड की मूल ध्वनि कहा गया है। यह न केवल एक अक्षर है, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का सार है। यह मंत्र ईश्वर के निराकार, अनादि और अनंत रूप का प्रतीक है। हिंदू धर्म की कई महानतम आध्यात्मिक परंपराएं, वेद, उपनिषद, मंत्र और साधनाएं ॐ की शक्ति को सर्वोच्च मानती हैं।
इस लेख में हम जानेंगे कि ओंकार की उत्पत्ति कैसे हुई, इसका शिव के साथ क्या संबंध है और पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का क्या रहस्य है। साथ ही, हम यह भी समझेंगे कि भगवान शिव के पाँच मुखों का आध्यात्मिक महत्व क्या है।
ओंकार की उत्पत्ति और उसका शिवस्वरूप
ॐ की उत्पत्ति का वर्णन शिवपुराण के विद्येश्वर संहिता के अध्याय 9 में मिलता है। इसमें भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को ओंकार के रहस्य को विस्तार से बताया। महादेव ने कहा कि सबसे पहले उनके मुख से ओंकार प्रकट हुआ, जो उनके स्वरूप का परिचायक है। यह नादरूप मंत्र स्वयं शिव का ही रूप है। उन्होंने इसे “महा मंगलकारी” मंत्र बताया जो सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है।
भगवान शिव के पाँच मुखों से अलग-अलग ध्वनियाँ प्रकट हुईं:
- उत्तरवर्ती मुख से अकार (अ)
- पश्चिम मुख से उकार (उ)
- दक्षिण मुख से मकार (म)
- पूर्ववर्ती मुख से बिंदु (ँ)
- मध्यवर्ती मुख से नाद (अनाहत ध्वनि)
इन पांच ध्वनियों से एक साथ मिलकर “ॐ” (ओंकार) बना। यह मात्र एक ध्वनि नहीं, बल्कि सृष्टि का बीज है, जो ब्रह्मांड के प्रत्येक कण में व्याप्त है। यह शिव का नादस्वरूप है और इस ओंकार के माध्यम से ही समस्त वेद, मंत्र और ज्ञान प्रकट हुए हैं।
‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र की उत्पत्ति और रहस्य
‘ॐ नमः शिवाय’ पंचाक्षर मंत्र है, जिसका अर्थ है – “मैं शिव को नमस्कार करता हूँ।” यह मंत्र ब्रह्मांड की पंचमहाभूत शक्तियों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – का प्रतिनिधित्व करता है। हर अक्षर एक तत्व का प्रतीक है:
- न – पृथ्वी
- म – जल
- शि – अग्नि
- वा – वायु
- य – आकाश
यह मंत्र पंचमुखी शिव के स्वरूप को समर्पित है। इस मंत्र का निरंतर जाप करने से मन शुद्ध होता है, आत्मा परिशुद्ध होती है और साधक शिव में एकरूप होने लगता है।
यह भी माना जाता है कि यही पंचाक्षर मंत्र मूल बीजाक्षरों (अ, इ, उ, ऋ, लृ) और मातृका वर्णों से जुड़ा हुआ है। इनसे ही त्रिपदा गायत्री का प्राकट्य हुआ और गायत्री से सम्पूर्ण वेद निकले। वेदों से करोड़ों मंत्रों का निर्माण हुआ, जिनसे विभिन्न कार्यों की सिद्धि संभव होती है। लेकिन यह पंचाक्षर मंत्र सबसे श्रेष्ठ है क्योंकि इससे भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव के पांच मुख और उनके पांच कृत्य
भगवान शिव के पाँच मुख केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं, वे पाँच महाकर्मों के प्रतिनिधि हैं। एक बार ब्रह्मा और विष्णु ने शिव से पूछा कि उनके इन मुखों का रहस्य क्या है। तब शिव ने कहा कि उन्होंने जगत के लिए पाँच प्रकार के कार्य निर्धारित किए हैं, जिन्हें पंचकृत्य कहा गया है:
- सृष्टि (Creation) – जगत की उत्पत्ति, जो ब्रह्मा को प्राप्त हुई।
- स्थिति (Sustenance) – उसका पालन और स्थायित्व, जो विष्णु को प्राप्त हुआ।
- संहार (Destruction) – विनाश या परिवर्तन, जो रूद्र को प्रदान किया गया।
- तिरोभाव (Veiling) – आत्मा पर मायाजाल की आच्छादन प्रक्रिया, जो महेश के अधीन है।
- अनुग्रह (Grace) – आत्मा को मोक्ष देना, यह केवल शिव ही कर सकते हैं।
इन पाँच कार्यों को सम्पन्न करने के लिए भगवान शिव ने अपने पाँच मुख प्रकट किए:
- चार दिशाओं में चार मुख और
- पाँचवा मुख मध्यवर्ती है, जो अनुग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।
इन कार्यों को महाभूतों से भी जोड़ा गया है:
- सृष्टि — पृथ्वी में
- स्थिति — जल में
- संहार — अग्नि में
- तिरोभाव — वायु में
- अनुग्रह — आकाश में
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ॐ और पंचाक्षर मंत्र का महत्व
सनातन परंपरा में ॐ को “नादब्रह्म” कहा गया है – जो अनाहत ध्वनि के रूप में हृदय में सुनाई देती है। यह मंत्र केवल जाप के लिए नहीं, बल्कि ध्यान और आत्मबोध का साधन है। जब साधक ‘ॐ’ का उच्चारण करता है, तो उसका चित्त स्थिर होता है और वह अंतर्मन की ओर यात्रा करता है।
वहीं ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र, मानव को आत्म-शुद्धि, कर्मशुद्धि और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। इसके जाप से न केवल आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि सांसारिक जीवन में भी स्थिरता, सकारात्मकता और आनंद की अनुभूति होती है।
निष्कर्ष: ओंकार से लेकर मोक्ष तक
ओंकार ही शिव का नादस्वरूप है। यह ब्रह्मांड का मूल आधार है। पंचमुखी शिव और पंचमहाभूतों से संबंधित पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ केवल मंत्र नहीं बल्कि मोक्ष का मार्ग है।
जो साधक श्रद्धा और नियमितता से इसका जाप करता है, वह अंततः शिवतत्व को प्राप्त करता है। यह मंत्र भोग भी देता है और मोक्ष भी। यही शिव का अनुग्रह है — जो केवल तप, श्रद्धा और ध्यान से प्राप्त किया जा सकता है।
हर हर महादेव!
ॐ नमः शिवाय।