विघ्नविनाशक गणेश जी कौन हैं? सबसे पहले पूजा का कारण और जन्म की पौराणिक कथा

गणेश जी हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय और प्रिय देवताओं में से एक हैं। इन्हें विघ्नविनाशक, बुद्धि के देवता, और शुभकार्य के आरंभकर्ता के रूप में पूजा जाता है। गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है क्योंकि वे सभी विघ्नों और बाधाओं को दूर करते हैं और नई शुरुआत के लिए शुभता प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में विस्तार से कि कौन हैं गणेश जी, सबसे पहले उनकी पूजा क्यों होती है और उनकी पूरी पौराणिक कहानी।

विघ्नविनाशक गणेश कौन हैं?

विघ्नविनाशक गणेश हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय और प्रिय देवताओं में से एक हैं। इन्हें भगवान गणेश, गणपति, या विनायक भी कहा जाता है। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और अपने हाथी के सिर वाले रूप के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।

गणेश जी को विघ्नविनाशक इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे सभी प्रकार की बाधाओं, परेशानियों और विघ्नों को दूर करते हैं। उनका नाम ही “विघ्न” (बाधा) और “विनाशक” (नाश करने वाला) का मेल है, जो यह दर्शाता है कि उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट और मुश्किलें समाप्त हो जाते हैं।

गणेश अथर्वशीर्ष में उनकी महिमा का उल्लेख है —

“त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि॥”

अर्थात — हे गणेश! आप ही साक्षात् परब्रह्म हैं। आप ही सृष्टि के कर्ता, पालक और संहारक हैं।

गणेश जी के जन्म की रोचक कथा

कहा जाता है प्राचीन काल में एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जा रही थीं। चूँकि भगवान शिव प्रायः ध्यान में लीन रहते थे और नंदी सहित उनके सभी गण केवल शिवजी की आज्ञा मानते थे, इसलिए पार्वती जी को यह अनुभव हुआ कि उनका कोई अपना गण नहीं है, जो सिर्फ उनकी आज्ञा का पालन करे।

इसी विचार से उन्होंने अपने शरीर के मैल और चंदन के उबटन को मिलाकर एक सुंदर बालक की प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण फूँक दिए। इस प्रकार एक अत्यंत तेजस्वी और सुंदर बालक का जन्म हुआ। माता ने स्नेहपूर्वक उस बालक को अपना पुत्र स्वीकार किया और उसे द्वारपाल बनाकर आदेश दिया कि जब तक वे स्नान करके न लौटें, तब तक किसी को भी भीतर प्रवेश न करने दिया जाए।

बालक माता की आज्ञा का पालन करते हुए द्वार पर पहरा देने लगा। कुछ समय बाद भगवान शिव वहाँ आए और भीतर जाने का प्रयास करने लगे। बालक ने उन्हें रोक दिया और कहा—

“आप अंदर नहीं जा सकते, मेरी माता ने आदेश दिया है कि जब तक वे स्नान करके न आएँ, तब तक किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है।”

शिवजी ने धैर्यपूर्वक बालक को समझाया कि वे पार्वती के पति हैं और उन्हें भीतर जाने का पूर्ण अधिकार है। किन्तु बालक अडिग रहा और बोला कि माता की आज्ञा से बड़ा कोई नहीं। यह सुनकर शिवजी का क्रोध भड़क उठा और वहाँ भयंकर युद्ध छिड़ गया।

आश्चर्य की बात यह थी कि अकेला बालक भी शिवजी का सामना कर रहा था। अंततः क्रोधावेश में आकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।

कुछ ही देर बाद जब माता पार्वती बाहर आईं और अपने बनाए पुत्र का कटा हुआ सिर देखा, तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध से समस्त सृष्टि थर्रा उठी और देवगण भयभीत हो गए। माता ने घोषणा की कि यदि उनके पुत्र को पुनः जीवित न किया गया तो वे पूरी सृष्टि का विनाश कर देंगी।

सभी देवताओं ने मिलकर शिवजी से इस संकट का समाधान करने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में सिर करके सोए किसी भी जीव का सिर लाएँ। गणों को मार्ग में एक हाथी का बच्चा मिला जो उत्तर दिशा की ओर मुख करके सो रहा था। उन्होंने उसका सिर काटकर शिवजी को अर्पित किया।

भगवान शिव ने उस हाथी का सिर बालक के धड़ पर लगाया और उसमें प्राण फूँक दिए। तभी वह बालक पुनः जीवित हो उठा, अब वह गजमुख वाले स्वरूप में दिखाई देने लगा।

माता पार्वती अपने पुत्र को पुनः जीवित देखकर प्रसन्न हो गईं। भगवान शिव ने भी बालक को आशीर्वाद दिया और कहा—

“आज से तुम गणों के ईश्वर कहलाओगे, ‘गणपति’ के नाम से पूजित होगे। सभी देवताओं और मनुष्यों के शुभ कार्यों में सबसे पहले तुम्हारी पूजा होगी। तुम विघ्नों का नाश करने वाले ‘विघ्नविनाशक’ और सभी के लिए मंगलकारी ‘प्रथम पूज्य’ कहलाओगे।”

इसी कारण भगवान गणेश को गजानन (गज = हाथी, आनन = मुख) और प्रथम पूज्य देवता कहा जाता है। तभी से किसी भी शुभ कार्य, यात्रा, यज्ञ, विवाह या पूजा की शुरुआत गणेश जी के स्मरण और आराधना से की जाती है।

क्यों होती है सबसे पहले गणेश जी की पूजा?

एक बार सभी देवताओं के बीच यह विवाद हो गया कि उनमें से कौन पृथ्वी पर सबसे पहले पूजा जाने योग्य है। सभी देवता खुद को श्रेष्ठ बताने लगे, तब इस समस्या को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने एक प्रतियोगिता रखी। उन्होंने सभी देवताओं से कहा कि जो सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करके वापस आएगा, वही प्रथम पूज्य कहलाएगा।

सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल पड़े। भगवान कार्तिकेय अपने तेज वाहन मोर पर बैठकर तुरंत ही निकल गए। लेकिन गणेश जी, जिनका वाहन एक छोटा चूहा है, उन्होंने एक अलग तरीका अपनाया।

गणेश जी ने अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती, की सात बार परिक्रमा की और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। जब भगवान शिव ने उनसे पूछा कि उन्होंने परिक्रमा क्यों नहीं की, तो गणेश जी ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया, “मेरे लिए आप दोनों ही संपूर्ण ब्रह्मांड हैं। माता-पिता की परिक्रमा करना ही पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करने के बराबर है।”

भगवान शिव और माता पार्वती गणेश जी के इस जवाब से बहुत प्रसन्न हुए। जब कार्तिकेय ब्रह्मांड की परिक्रमा करके लौटे, तो उन्होंने देखा कि गणेश जी पहले ही जीत चुके हैं।

भगवान शिव ने गणेश जी की बुद्धिमत्ता और माता-पिता के प्रति उनके अटूट प्रेम को देखकर उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया। उन्होंने कहा कि आज से किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाएगी और जो ऐसा नहीं करेगा, उसका कार्य सफल नहीं होगा।

यही कारण है कि आज भी किसी भी पूजा, अनुष्ठान या नए काम की शुरुआत से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है ताकि बिना किसी बाधा के वह काम सफलतापूर्वक पूरा हो सके।

निष्कर्ष

भगवान गणेश केवल एक देवता ही नहीं, बल्कि बुद्धि, विवेक, सफलता और विघ्नों के विनाश का प्रतीक हैं। वे हर शुभ कार्य में शुभारंभ और सफलता के दाता हैं। गणेश जी का स्मरण जीवन में सकारात्मकता, उत्साह और आत्मविश्वास को जन्म देता है।

इसलिए ही उन्हें विघ्नविनाशक, प्रथम पूज्य और मंगलकारी देव कहा गया है।

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