कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है? इसका पौराणिक रहस्य और जन्म कथा क्या है?

कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और उल्लासमय पर्व है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि प्रेम, धर्म और आनंद के अवतरण का प्रतीक है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जब श्रीकृष्ण ने मथुरा के कारागार में जन्म लिया था।
जन्म का अलौकिक समय और ज्योतिषीय महत्व
जब उनका जन्म हुआ तब भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकल चुके थे और आठवां मुहूर्त प्रारंभ हुआ था। रोहिणी नक्षत्र, अष्टमी तिथि, और मध्यरात्रि के संयोग से जयंती योग बना था, जो अत्यंत शुभ, पवित्र और दिव्य संयोग माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उस समय शून्य काल था, जो किसी दिव्य अवतरण के लिए आदर्श माना गया है।
यह वही समय था जब सभी ग्रहों की शुभ दृष्टि श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली पर थी। विशेष रूप से चंद्रमा रोहिणी में स्थित था, जो श्रीकृष्ण के जीवन में सौंदर्य, प्रेम और शीतलता का प्रतीक बना।
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भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण – धर्म की पुनर्स्थापना हेतु
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म केवल एक शिशु का जन्म नहीं था, बल्कि यह स्वयं परब्रह्म परमात्मा का इस धरती पर अवतरण था। श्रीकृष्ण का जन्म पूर्णावतार के रूप में हुआ — अर्थात वे सोलह कलाओं से युक्त थे।
श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, हरिवंश पुराण, और विष्णु पुराण में उनके अवतरण को अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना का कार्य बताया गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं –
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥” (गीता 4.8)
अनुवाद: साधुओं (भक्तों) की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।
कृष्ण जन्म की प्रामाणिक और सत्य कथा

कंस अपनी चचेरी बहन देवकी से अत्यंत स्नेह करता था, लेकिन जब उसके विवाह के अवसर पर आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही उसका वध करेगा, तो उसका चेहरा भय और क्रोध से तमतमा उठा। उसने तलवार खींच ली और अपनी ही बहन को मारने दौड़ा, परंतु वसुदेव ने बुद्धिमत्ता से उसे शांत किया और वचन दिया कि वे अपनी प्रत्येक संतान उसे सौंप देंगे। कंस ने यह शर्त मान ली और दोनों को मथुरा के कारागार में बंद कर दिया।
एक-एक कर छह संतानों का जन्म हुआ और कंस ने उन्हें जन्म लेते ही निर्दयता से मार डाला। सातवें गर्भ में श्रीशेष स्वयं बालरूप में आए, जिन्हें भगवान विष्णु ने योगमाया के माध्यम से देवकी के गर्भ से निकालकर वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में सुरक्षित स्थानांतरित कर दिया। यही शेषनाग आगे चलकर बलराम के रूप में प्रसिद्ध हुए।
आठवें समय देवकी के गर्भ से स्वयं भगवान विष्णु ने पूर्णावतार लिया और कारागार में प्रकट होकर देवकी-वसुदेव को उनके पूर्व जन्मों की तपस्या और उनके द्वारा प्राप्त वरदान की स्मृति कराई। उन्होंने बताया कि वे पहले वृष्णिगर्भ के रूप में, फिर अदिति के पुत्र उपेंद्र (वामन) के रूप में जन्म ले चुके हैं और अब तीसरी बार उनका वचन निभाने आए हैं।
श्रीकृष्ण का जन्म और योगमाया की कृपा
जन्म के समय रात अंधकार से घिरी थी, भयंकर बारिश हो रही थी, बिजली गरज रही थी, और यमुना में बाढ़ जैसी स्थिति थी। चारों ओर मृत्यु जैसा सन्नाटा था, परंतु उसी समय योगमाया प्रकट हुईं और वसुदेव को आदेश दिया कि वे नवजात शिशु को गोकुल ले जाकर यशोदा के पास रखें और वहाँ से जन्मी कन्या को लाकर कारागार में रख दें।
वसुदेव ने भयभीत होकर पूछा, “मैं कैसे जाऊं? मेरे हाथ-पैर बेड़ियों में जकड़े हैं और बाहर कंस के सैनिक पहरा दे रहे हैं।” योगमाया मुस्कुराईं और बोलीं, “तुम स्वतंत्र हो जाओगे, द्वार अपने आप खुलेंगे, पहरेदार सो जाएंगे। यह मेरी माया है।” और वही हुआ।
वसुदेव की बेड़ियाँ टूट गईं, द्वार खुल गए, सैनिक गहरी नींद में चले गए। उन्होंने बालक को एक टोकरी में रखा और भीषण बारिश के बीच यमुना नदी की ओर बढ़ चले। यमुना तट पर पहुँचकर वे जब नदी पार करने लगे तो जल कमर तक और फिर गले तक पहुँचा, तभी शेषनाग प्रकट होकर बालक के ऊपर अपनी फनों की छाया कर देते हैं और यमुना माता स्वयं श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श कर मार्ग बना देती हैं।
इस दैवी सहयोग से वसुदेव गोकुल पहुँचते हैं, और यशोदा माता के पास जन्मे बालक के पास श्रीकृष्ण को सुलाकर नवजात कन्या को साथ लेकर लौट आते हैं।
कंस द्वारा कन्या को मारने का प्रयास और योगमाया का प्रकट होना
कारागार में आकर वसुदेव ने कन्या को देवकी के पास सुलाया और योगमाया की कृपा से सब कुछ भूल गए। सुबह होते ही कंस को जैसे ही आठवें संतान के जन्म का समाचार मिला, वह दौड़ता हुआ कारागार में आया और कन्या को देखकर चौंक गया।
वह बोला “आठवां बालक पुत्र होना चाहिए, यह कन्या कैसे हो सकती है?” देवकी ने भय से कांपते हुए उत्तर दिया “भैया, सच में यही जन्मी है।” वसुदेव भी बोले, “जब मेरी आँख खुली, तब मैंने इसी कन्या को देखा, मैं कभी झूठ नहीं बोलता।”
कंस को फिर भी संतोष नहीं हुआ। उसने कहा, “यह भी विष्णु की कोई माया है। मैं इस कन्या को भी मार डालूंगा।” उसने कन्या को देवकी से छीन लिया और ज़मीन पर पटकने ही वाला था कि कन्या उसके हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई।
वहीं, आकाश में चमकती हुई योगमाया प्रकट हुईं और अट्टाहास करती हुई बोलीं,
भागवत पुराण, स्कंध 10, अध्याय 4, श्लोक 12–13 में योगमाया कहती हैं:
“मां त्वं हन्तुमिहाशंसन् वधिष्येति जनाः श्रुताः।
अन्यत्र संभृतं जन्म त्वद्वधाय हरेर्यथा॥”
अनुवाद:
“तू जिसे मारने की चेष्टा कर रहा है, वह मैं नहीं हूँ। वह, जो तुझे मारेगा, पहले ही कहीं और जन्म ले चुका है।”
यह कहकर योगमाया अदृश्य हो गईं। कंस स्तब्ध खड़ा रह गया। अब उसे समझ आ गया था कि भाग्य के विरुद्ध वह कुछ नहीं कर सकता।
कृष्ण जन्माष्टमी का पौराणिक रहस्य
कृष्ण जन्माष्टमी का पौराणिक रहस्य केवल श्रीकृष्ण के जन्म की एक धार्मिक तिथि नहीं है, बल्कि यह अधर्म पर धर्म की विजय, अंधकार में प्रकाश के उदय और जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का गहन प्रतीक है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब द्वापर युग में पृथ्वी पाप, अन्याय और अत्याचार से कराह उठी, तब भगवान विष्णु ने वचनबद्ध होकर वसुदेव और देवकी के पुत्र रूप में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।
जन्माष्टमी केवल एक बालक के जन्म की स्मृति नहीं है, बल्कि उस दैवी लीला का आरंभ है, जिसमें कारागार के बंद द्वार अपने आप खुलते हैं, यमुना की उफनती लहरें शांत हो जाती हैं, और समय अपनी गति बदल देता है ताकि एक नन्हा बालक, जिसे संसार “कृष्ण” कहेगा, अधर्म रूपी कंस का अंत कर सके।
निष्कर्ष
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जब-जब संसार में असंतुलन उत्पन्न होता है, तब-तब ईश्वर किसी न किसी रूप में जन्म लेकर सत्य और प्रेम की स्थापना करता है।
जन्माष्टमी का रहस्य यही है – हर युग में श्रीकृष्ण केवल मथुरा में नहीं, हर जागरूक हृदय में जन्म लेते हैं।