विजयदशमी पर दिन शमी वृक्ष का पूजन क्यों किया जाता है? जानिये पौराणिक कथा

विजयदशमी का त्यौहार न केवल बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह सफलता, समृद्धि और शक्ति का भी उत्सव है। शारदीय नवरात्रि के समापन पर आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला यह दिन भगवान राम द्वारा रावण वध और देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर पर विजय की स्मृति में समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन शमी वृक्ष का पूजन क्यों किया जाता है? हिंदू परंपरा में शमी वृक्ष को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और इसका पूजन विजय की कामना के लिए किया जाता है। आइए, इसकी पौराणिक कथाओं और महत्व को विस्तार से समझें।
शमी वृक्ष पूजन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से कार्यों में बाधाएं दूर होती हैं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और घर में धन-समृद्धि का वास होता है। दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पत्तियों को सोने-चांदी के सिक्कों के प्रतीक के रूप में एक-दूसरे को बांटा जाता है, जो समृद्धि का संदेश देता है। क्षत्रिय वर्ग में यह पूजन विशेष रूप से प्रचलित है, जहां हथियारों के साथ शमी का दर्शन किया जाता है। लेकिन इसके पीछे कई रोचक पौराणिक कथाएं हैं, जो इस परंपरा को जीवंत बनाती हैं।
भगवान राम और शमी वृक्ष :
रामायण और कई पुराणों में शमी वृक्ष (जिसे कहीं-कहीं खेजड़ी या समि वृक्ष भी कहा गया है) को विशेष महत्व प्राप्त है। दशहरे के दिन शमी की पूजा की परंपरा भी इन्हीं प्रसंगों से जुड़ी हुई है। वाल्मीकि रामायण (युद्धकाण्ड) के आधार पर यह मान्यता है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम लंका पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे, तो उन्होंने विजय की कामना के लिए शमी वृक्ष के समक्ष नमन किया। उन्होंने वृक्ष से प्रार्थना की कि “हे शमी! मेरी इस यात्रा में सभी बाधाएँ दूर हों और रावण पर विजय प्राप्त हो।” विजय प्राप्त करने के बाद भी श्रीराम ने शमी वृक्ष के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उसका पूजन किया। यह प्रसंग भारतीय संस्कृति में शमी को विजय, कृतज्ञता और दान का प्रतीक बनाता है।
Read Also: राम ने क्यों की थी माँ दुर्गा की पूजा? शारदीय नवरात्रि की पौराणिक कथा
स्कंद पुराण और पद्म पुराण में भी शमी वृक्ष को शुभ और विजयदायक बताया गया है। इन पुराणों के अनुसार, दशहरे के दिन शमी की पूजा करने से समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। स्कंद पुराण के “दशहरा महात्म्य” अध्याय में उल्लेख है कि शमी पत्तियों का आदान-प्रदान “सोना-पत्ति” के रूप में करना धन और समृद्धि का प्रतीक है। यह भी माना जाता है कि अयोध्या लौटते समय श्रीराम ने अपनी प्रजा को स्वर्ण भेंट किया था, जिसका प्रतीक आज भी शमी की पत्तियाँ बाँटने की परंपरा में जीवित है।
राजस्थान और पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में खेजड़ी या शमी की पत्तियों को “सोना पत्ती” कहकर दशहरे के दिन बाँटा जाता है। वायु पुराण और भविष्य पुराण में इसका उल्लेख मिलता है कि ये पत्तियाँ धन, वैभव और यश का प्रतीक मानी जाती हैं। श्रीराम और शमी वृक्ष की यह कथा हमें बताती है कि यह वृक्ष केवल एक वनस्पति नहीं, बल्कि विजय, समृद्धि और दान का प्रतीक है। दशहरे के दिन इसका पूजन करने से श्रीराम जैसी सफलता, सौभाग्य और सम्मान प्राप्त होता है। यही कारण है कि रामायण से लेकर पुराणों तक शमी वृक्ष का महत्व बार-बार रेखांकित किया गया है।
महाभारत काल के पांडव और शमी वृक्ष :
महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा शमी पूजन से जुड़ी है। जुए में राज्य हारने के बाद पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा। अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में राजा विराट के दरबार में छिपे पांडवों ने अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र शमी वृक्ष की डालियों पर लटका दिए। अर्जुन ने गांडीव धनुष सहित सभी हथियार वृक्ष में छिपाए और स्वयं ब्राह्मण वेश में विराट की सेवा करने लगे। जब कौरव राजकुमारों ने विराट के गौवंश पर आक्रमण किया, तो अर्जुन ने शमी वृक्ष से हथियार उतारे। उन अस्त्रों से उन्होंने कौरवों को पराजित कर दिया। इस विजय के बाद पांडवों ने शमी वृक्ष और हथियारों का पूजन किया। तभी से दशमी तिथि को शमी पूजन और शस्त्र पूजा की परंपरा चली आ रही है। यह कथा शमी को तेजस्विता और दृढ़ता का प्रतीक बनाती है, जो कठिनाइयों में भी सहारा देता है।
Read Also: लक्ष्मी पूजन के दिन मुहूर्त ट्रेडिंग का महत्व और इतिहास
महर्षि वर्तन्तु और कौत्स की कथा :
एक अन्य पौराणिक कथा महर्षि वर्तन्तु और उनके शिष्य कौत्स से जुड़ी है। गुरु वर्तन्तु ने कौत्स से गुरु दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगीं। कौत्स ने यह राशि इक्ष्वाकु वंश के राजा रघु से मांगी। रघु का खजाना खाली था, इसलिए उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण की तैयारी की। इससे घबराए देवराज इंद्र ने कुबेर से प्रार्थना की। कुबेर ने रघु के राज्य में शमी वृक्ष पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा कर दी। यह घटना विजयादशमी के दिन घटी। कौत्स ने स्वर्ण लेकर गुरु को भेंट किया, और शेष रघु को लौटा दिया। इस कथा से शमी वृक्ष धन वर्षा का स्रोत माना गया। दशहरे पर इसका पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
विजयदशमी हमें सिखाती है कि सत्य की राह पर चलने से हर बाधा दूर होती है। शमी पूजन इस संदेश को मजबूत करता है। इस पावन दिन सभी को विजय की कामना! यदि आप भी पूजन करेंगे, तो निश्चित रूप से सफलता आपके कदम चूमेगी।