यमराज पराजय कथा : धनतेरस का पौराणिक रहस्य और यमदीपदान का महत्व

धनतेरस, जिसे ‘धनत्रयोदशी’ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ पर्व है। यह दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का प्रथम दिन होता है, जो कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। धनतेरस का नाम ‘धन’ (समृद्धि) और ‘तेरस’ (त्रयोदशी) से मिलकर बना है, जो धन, वैभव और स्वास्थ्य का प्रतीक है। इस पर्व को यमराज को पराजित करने वाले पर्व के रूप में भी जाना जाता है, जिसके पीछे पौराणिक कथाएं और गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे हैं।

धनतेरस को केवल धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा का दिन नहीं माना जाता, बल्कि इसे यमराज को पराजित करने का पर्व भी कहा जाता है। इसके पीछे एक रोचक कथा प्रचलित है, जिसका उल्लेख विभिन्न ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। इस दिन को विशेष रूप से यमदीपदान के नाम से भी जाना जाता है। परंपरा है कि धनतेरस की रात को घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय टल जाता है। इस विश्वास के पीछे एक प्रेरणादायी और रहस्यमयी कथा जुड़ी है, जो हमारे धर्मग्रंथों और लोकपरंपराओं में वर्णित है।

हेम नामक युवक और मृत्यु का संकट

बहुत समय पहले एक नगर में हेम नामक युवक रहता था। उसका विवाह एक सुशील और सुंदर कन्या से हुआ। विवाह का उल्लास पूरे नगर में था, लेकिन उस खुशी पर अचानक अशुभ बादल मंडराने लगे। ज्योतिषियों और पंडितों ने गणना कर बताया कि हेम की आयु अल्प है और उसका जीवन विवाह के चौथे दिन ही समाप्त हो जाएगा। यह सुनकर परिवार और नगरवासियों में शोक फैल गया।

हेम स्वयं भी भयभीत था, पर उसकी पत्नी दृढ़ इच्छाशक्ति और अटूट विश्वास वाली थी। उसने ठान लिया कि वह अपने पति को यमराज के पंजों से बचाएगी, चाहे इसके लिए कितना भी कठिन उपाय क्यों न करना पड़े।

पत्नी की योजना और दीपों का चमत्कार

विवाह के चौथे दिन, जब नियति ने हेम का जीवन समाप्त करने का निर्णय लिया था, उसकी पत्नी ने अपने घर को मृत्यु के अंधकार से बचाने का अद्भुत उपाय किया।

  • उसने घर के मुख्य द्वार और आँगन में सैकड़ों दीपक जलाए।
  • सोने, चाँदी और रत्नों के आभूषणों को सजाकर पूरे घर को चमकते खजाने जैसा बना दिया।
  • दीपों की लौ और आभूषणों की चमक से पूरा घर ऐसा आलोकित हो उठा कि मानो स्वर्ग से इंद्रलोक उतर आया हो।

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यमराज का आगमन और उनका चकित होना

निर्धारित समय पर यमराज अपने दूतों सहित प्रकट हुए। उन्होंने सर्प का रूप धारण कर हेम की आत्मा लेने का प्रयास किया। परंतु जब वे घर में प्रवेश करने आए तो दीपकों की अपार रोशनी और आभूषणों की चमक ने उनकी आँखों को चौंधिया दिया।

वे द्वार पर ही ठिठक गए। भीतर जाने का मार्ग उन्हें दिखाई नहीं दिया। यमराज के लिए यह अत्यंत आश्चर्य की बात थी, क्योंकि आज तक उन्होंने किसी मानव को मृत्यु से बचते हुए नहीं देखा था।

यमराज ने देखा कि यह सब केवल उस नवविवाहिता पत्नी के दृढ़ निश्चय और भक्ति का परिणाम है। उसके प्रेम और समर्पण ने मृत्यु के नियमों को भी चुनौती दे दी। अंततः यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और हेम की आयु बढ़ गई। इस प्रकार, पत्नी ने अपनी श्रद्धा और बुद्धिमानी से यमराज को पराजित कर दिया।

धर्मग्रंथों में यमदीपदान का महत्व

इस कथा का प्रभाव इतना गहरा पड़ा कि धर्मग्रंथों और पुराणों में यमदीपदान का विशेष महत्व बताया गया।

  • पद्म पुराण में कहा गया है कि धनतेरस की रात दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और मृत्यु का भय समाप्त होता है।
  • शिव पुराण में वर्णन है कि दीपमालाएँ घर में शुभता, आयु वृद्धि और समृद्धि लाती हैं।
  • भागवत पुराण के अनुसार दीपदान पापकर्मों का नाश करता है और मनुष्य के जीवन में सौभाग्य बढ़ाता है।

परंपरा और लोकविश्वास

इस कथा के कारण ही धनतेरस के दिन लोग:

  • घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाते हैं ताकि यमराज का कोप टल जाए।
  • सोना-चाँदी, तांबा, बर्तन और धातु की वस्तुएँ खरीदते हैं ताकि घर में स्थायी सुख-समृद्धि बनी रहे।
  • इसे यमदीपदान कहा जाता है, जो मृत्यु और अकाल से रक्षा का प्रतीक है।
निष्कर्ष

धनतेरस की यह कथा केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं है, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि भक्ति, श्रद्धा और दृढ़ निश्चय से असंभव भी संभव हो सकता है। मृत्यु जैसे अटल सत्य पर भी आस्था विजय प्राप्त कर सकती है। यही कारण है कि धनतेरस को “यमराज को पराजित करने वाला पर्व” कहा जाता है और आज भी इस दिन दीपदान और धातु की खरीदारी करना शुभ और आवश्यक माना जाता है।

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