भाई दूज: जब यमराज ने बहन यमुना के प्रेम के आगे झुकाया शीश

भाई दूज, जिसे भ्रातृ द्वितीया, यम द्वितीया और कई क्षेत्रों में भाई टीका या भाऊ बीज भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है और दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का अंतिम दिन होता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस दिन भाई अपनी बहनों के घर जाकर तिलक करवाता है और भोजन करता है। ऐसा करने से वह यमलोक के भय से मुक्त होता है और दीर्घायु प्राप्त करता है। बहनें इस दिन व्रत और तिलक की परंपरा निभाकर सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त करती हैं।

यमराज और यमुना की कथा – ग्रंथों से प्रमाण सहित

पद्म पुराण और स्कंद पुराण में उल्लेख है कि सूर्यदेव और संज्ञा देवी के तीन प्रमुख संतानों में यमराज, यमुनाजी और भगवान शनि थे। यमराज को मृत्यु और धर्म का देवता कहा गया है, जबकि यमुना पृथ्वी पर प्रवाहित होने वाली दिव्य नदी के रूप में पूजनीय हैं।

सूर्यपुत्र यम और यमुना की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, धर्मराज यमराज और देवी यमुना, भगवान सूर्य और उनकी पत्नी देवी संज्ञा की संतान थे। दोनों भाई-बहन में असीम स्नेह था। देवी यमुना को अपने भाई यमराज से बहुत लगाव था और वह बार-बार उनसे अपने घर आकर भोजन करने का अनुरोध करती थीं।

परंतु, यमराज अपने देव-कर्तव्यों में इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें अपनी बहन के घर जाने का अवसर ही नहीं मिल पाता था। वे सृष्टि के सभी प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखने और उन्हें उनके कर्मानुसार फल देने के दायित्व से बंधे थे। हर बार जब यमुना उन्हें बुलातीं, तो यमराज किसी न किसी कारणवश उनके निवेदन को टाल देते।

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जब बहन के आँगन पधारे मृत्यु के देवता

एक बार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमुना ने फिर अपने भाई को निमंत्रण भेजा। इस बार उनका आग्रह इतना स्नेहपूर्ण और हृदय से भरा था कि यमराज स्वयं को रोक नहीं पाए। उन्होंने अपने सारे कार्यों को एक तरफ रखकर अपनी बहन यमुना से मिलने का निश्चय किया।

यमदेव को अपने घर के द्वार पर देखकर यमुना की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उनका हृदय प्रफुल्लित हो उठा। उन्होंने बड़े ही उत्साह और मंगल गीतों के साथ अपने भाई का स्वागत किया। उन्होंने यमराज के लिए अपने हाथों से विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और उन्हें बड़े ही प्रेम से भोजन कराया।

भोजन के पश्चात, यमुना ने अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाया, उनकी आरती उतारी और उनके सुखी व दीर्घ जीवन के लिए प्रार्थना की।

यमराज का वरदान और भाई दूज का आरंभ

अपनी बहन का ऐसा निस्वार्थ प्रेम, आदर और सत्कार देखकर यमराज का हृदय द्रवित हो गया। वे अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी बहन यमुना से कोई भी वरदान मांगने को कहा।

तब यमुना ने हाथ जोड़कर कहा, “हे भ्राता! आप प्रत्येक वर्ष इसी दिन मेरे घर भोजन करने आया करें। मेरी बस यही अभिलाषा है। साथ ही, मैं यह भी वरदान चाहती हूँ कि आज के दिन जो भी बहन अपने भाई को इसी तरह आदरपूर्वक तिलक करे और भोजन कराए, उसे कभी आपका (मृत्यु का) भय न हो।”

यमराज ने अपनी प्यारी बहन के इस निःस्वार्थ वरदान को सुनकर “तथास्तु” कहा। उन्होंने वचन दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर उसके हाथों से तिलक लगवाएगा और भोजन ग्रहण करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा और यमलोक की यातनाओं से उसकी रक्षा होगी।

माना जाता है कि उसी दिन से “भाई दूज” या “यम द्वितीया” के इस पावन पर्व की शुरुआत हुई। यह कथा हमें सिखाती है कि स्नेह और प्रेम का बंधन इतना शक्तिशाली होता है कि वह मृत्यु के देवता को भी झुकने पर विवश कर सकता है।

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निष्कर्ष: 

भाई दूज केवल एक परंपरा या अनुष्ठान नहीं है, यह भाई-बहन के बीच के उस गहरे रिश्ते का उत्सव है, जो समय और दूरी से परे है। यह एक वचन है जो बहन अपने भाई की सलामती के लिए लेती है और एक प्रतिज्ञा है जो भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए करता है। यमराज और यमुना की यह कथा इस पर्व को और भी अधिक दिव्य और सार्थक बनाती है, जो हमें हर साल इस रिश्ते की पवित्रता और महत्व की याद दिलाती है।

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