श्रावण का अंतिम सोमवार 2025: पूजा विधि, व्रत कथा और शिव कृपा पाने का विशेष योग

श्रावण मास और सोमवार व्रत का धार्मिक महत्त्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास (सावन) को भगवान शिव का प्रिय महीना माना गया है। यह मास न केवल भक्ति और श्रद्धा से भरपूर होता है, बल्कि तप, त्याग और साधना के लिए भी विशेष होता है। श्रावण मास में आने वाले प्रत्येक सोमवार को “श्रावण सोमवार” कहा जाता है, जिसे शिव उपासना के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
चार सोमवारों में सबसे खास होता है श्रावण का अंतिम सोमवार, क्योंकि इसमें पूरे मास की साधना का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। वर्ष 2025 में यह दिन 4 अगस्त को पड़ेगा।
4 अगस्त 2025 – ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष दिन
इस दिन चंद्रमा का गोचर वृश्चिक राशि में रहेगा। साथ ही
- सर्वार्थ सिद्धि योग
- ब्रह्म योग
- इंद्र योग
का विशेष संयोग बन रहा है, जिससे इस दिन की पूजा और व्रत का पुण्यफल कई गुना अधिक हो जाता है।
🕉 श्रावण सोमवार और पंच तत्वों का संतुलन
हिन्दू दर्शन के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — से बना है। भगवान शिव स्वयं पंचतत्वों के अधिष्ठाता हैं। जब हम श्रावण सोमवार को शिव का जलाभिषेक करते हैं, तो यह केवल एक क्रिया नहीं बल्कि इन तत्वों के संतुलन की साधना होती है। यह साधना मन और शरीर दोनों को शुद्ध करती है।
समुद्र मंथन और शिव पूजन की परंपरा
शिवपुराण में वर्णित है कि समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को जब देवताओं और असुरों ने नहीं संभाला, तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए।
विष की उष्णता को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें गंगा जल और बेलपत्र अर्पित किया, तभी से श्रावण मास में जलाभिषेक और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई।
श्रावण सोमवार का विशेष पुण्य
- विवाहित स्त्रियाँ पति की दीर्घायु और सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं।
- अविवाहित कन्याएं शिव को वर रूप में पाने की कामना से व्रत करती हैं।
- यह दिन कर्मों की शुद्धि, पापों से मुक्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष माना गया है।
श्रावण सोमवार व्रत से जुड़ी गूढ़ मान्यता
कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि श्रावण सोमवार के व्रत करने से केवल इस जन्म में ही नहीं, बल्कि सात जन्मों तक शिव कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत आत्मिक उन्नति का मार्ग है।
शिवपुराण में लिखा है:
“श्रावणे शंकरं भक्त्या, यो यजन्ति समाहिताः।
तेषां पुण्यफलं वाच्यं, कोटिजन्मकृतं शिवम्॥”
भावार्थ: जो श्रावण मास में श्रद्धा से भगवान शंकर की पूजा करते हैं, उन्हें करोड़ों जन्मों के पुण्यों का फल प्राप्त होता है।
श्रावण सोमवार की पूजा विधि
1. प्रारंभिक तैयारी:
- ब्रह्ममुहूर्त में उठें, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजन का संकल्प लें।
2. पूजन स्थान पर स्थापना:
- भगवान शिव का चित्र या शिवलिंग स्थापित करें।
- साथ में माता पार्वती, भगवान गणेश और नंदी की प्रतिमा रखें।
3. अभिषेक सामग्री:
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
- गंगाजल
- बेलपत्र (खंडित न हो), सफेद पुष्प, धतूरा, चंदन, काला तिल
- धूप, दीपक, अगरबत्ती
- फल और सात्विक मिठाई का भोग
4. अभिषेक विधि:
- पंचामृत और फिर गंगाजल से शिवलिंग को स्नान कराएं
- बेलपत्र अर्पित करें
- चंदन, तिल, फूल आदि चढ़ाएं
- दीप प्रज्वलित कर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र की 108 बार जप करें
- शिव चालीसा या शिवाष्टक पढ़ें
- अंत में आरती करें और भोग अर्पित करें
5. पूजन उपरांत:
- ब्राह्मण या गरीबों को अन्न, वस्त्र, दक्षिणा का दान करें
- व्रत कथा का श्रवण/पठन करें
श्रावण सोमवार व्रत कथा — श्रद्धा से समृद्धि की ओर
पुराणों में वर्णित है कि एक समय एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी। दरिद्रता के कारण उसके पास न पर्याप्त भोजन था, न वस्त्र, और न ही सम्मान। परंतु उसके भीतर एक चीज थी — अटूट भक्ति और शिव के प्रति अपार श्रद्धा।
प्रतिदिन वह प्रातःकाल उठकर पास के एक प्राचीन शिव मंदिर में जाता, वहाँ जल, बेलपत्र और संभव हो तो पंचामृत से अभिषेक करता और “ॐ नमः शिवाय” का जप करता। उसके पास धन न था, पर उसका हृदय शिवमय था।
शिव के स्वप्नदर्शन — साधक के तप की स्वीकृति
श्रावण मास आया। वह ब्राह्मण श्रावण सोमवार का महत्व जानता था, लेकिन व्रत की पूर्ण विधि और सामग्री उसके लिए कठिन थी। फिर भी उसने नियमपूर्वक व्रत रखा, और मन, वचन और कर्म से शिव को समर्पित हो गया।
इसी भक्ति से प्रसन्न होकर एक रात्रि भगवान शंकर ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए। वे शांत, नीलकंठ, त्रिशूलधारी रूप में प्रकट हुए और बोले:
“हे ब्राह्मण! तूने जो श्रद्धा और नियमपूर्वक मेरी आराधना की है, उससे मैं प्रसन्न हूँ। यदि तू श्रावण मास के शेष सोमवारों में पूरी भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करेगा, तो मैं तुझ पर अपनी कृपा अवश्य करूंगा। तेरे समस्त कष्ट नष्ट हो जाएंगे।”
श्रद्धा और नियम से व्रत की पूर्णता
जागने के पश्चात ब्राह्मण ने उसी क्षण संकल्प लिया — “अब मैं जीवन के सभी कष्टों को सहकर भी श्रावण के शेष सोमवारों का व्रत करूँगा।” उसने श्रावण मास के सभी सोमवारों को विधिपूर्वक उपवास किया, गंगाजल, दूध और बेलपत्र से शिवलिंग का अभिषेक किया, मंत्रजप किया और शिव स्तुति का पाठ किया।
न धन की चिंता की, न भोजन की। केवल भगवान शिव में पूर्ण श्रद्धा रखी।
शिव कृपा से जीवन का परिवर्तन
श्रावण मास पूर्ण होते ही ब्राह्मण के जीवन में अद्भुत परिवर्तन आया। उसे एक धनवान व्यापारी ने अपने यज्ञ में बुलाया, वहाँ उसकी विद्वता और सरलता से प्रसन्न होकर उसे अन्न, वस्त्र और धन का दान मिला। धीरे-धीरे उसकी स्थिति बदलती गई। उसका जीवन समृद्ध हुआ, मान-सम्मान प्राप्त हुआ, और वह गाँव का सम्मानित पुरुष बन गया।
पुराणों का समर्थन — शिव व्रत की महिमा
शिवपुराण में वर्णित है:
“श्रावणे सोमवारे च यः करोति शिवार्चनम्।
स तुष्यति महादेवः, सर्वान् कामान् प्रयच्छति॥”
(शिव पुराण, वायवीय संहिता)
अर्थ: जो श्रावण सोमवार को शिवजी की पूजा करता है, भगवान शिव उससे प्रसन्न होते हैं और उसके सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं।
रुद्राभिषेक की दिव्यता – सर्वोच्च श्रद्धा का प्रतीक
रुद्राभिषेक का उल्लेख शिवपुराण, यजुर्वेद और स्कंदपुराण में आता है। अभिषेक के लिए प्रयुक्त हर वस्तु — जल, दूध, शहद, चंदन, बेलपत्र — शिव को प्रिय है और उनके माध्यम से हम शिव तत्व के साथ आंतरिक रूप से जुड़ते हैं।
श्रावण सोमवार: एक आध्यात्मिक साधना का अवसर
यह व्रत केवल बाहरी अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और शिव से जुड़ने की एक प्रक्रिया है।
‘ॐ नमः शिवाय’ का जप आत्मा को शिव-तत्व से जोड़ता है। यह दिन आत्मचिंतन, संयम और साधना का पर्व है।
निष्कर्ष: अंतिम सोमवार — शिवभक्ति का चरम क्षण
श्रावण मास का अंतिम सोमवार (4 अगस्त 2025) एक दिव्य अवसर है — जहाँ श्रद्धा, नियम और भक्ति से किया गया शिव पूजन जीवन की दिशा बदल सकता है।
यदि आपने अब तक व्रत नहीं किया है, तो यह दिन आपके लिए संकल्प और समर्पण का श्रेष्ठ क्षण हो सकता है।
“हर हर महादेव!” – यह केवल उद्घोष नहीं, वरन् विश्वास का सूत्र है।