श्रावण मास: शिव पूजा क्यों करें और कैसे करें | व्रत, कांवड़ यात्रा और पूजा का महत्व

श्रावण मास हिन्दू पंचांग के अनुसार एक अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक महीना है, जो चंद्र गणना पर आधारित होता है। यह मास आषाढ़ पूर्णिमा के बाद आरंभ होता है और भाद्रपद अमावस्या तक चलता है। वर्षा ऋतु का यह समय प्रकृति के स्तर पर जल, हरियाली और शीतलता लेकर आता है, और आध्यात्मिक स्तर पर मन, वाणी और आत्मा की शुद्धि का निमंत्रण देता है।
यह माह विशेषकर भगवान शिव को समर्पित होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस मास में शिवजी की पूजा करने से साधक को हजारों वर्षों की तपस्या के बराबर फल प्राप्त होता है। इसीलिए इसे शिव का प्रिय मास, श्रवण महीना, या श्रावण सौम्य भी कहा जाता है।
श्रावण शब्द का अर्थ और उसकी सांस्कृतिक गूंज
‘श्रावण’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत धातु “श्रु” से हुई है, जिसका अर्थ है — “सुनना”। इस दृष्टि से, श्रावण मास केवल भौतिक आर्द्रता का समय नहीं, बल्कि आध्यात्मिक श्रवण का भी समय है। इस मास में:
- वेदों का पाठ
- पुराणों की कथा
- शिव महिमा का श्रवण
- संतों के उपदेशों का सुनना
इन सभी का विशेष महत्व होता है। शिवपुराण, भागवत, और रामचरितमानस में भी बार-बार इस बात पर बल दिया गया है कि श्रवण के बिना ज्ञान और भक्ति की यात्रा आरंभ नहीं हो सकती।
“श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।” (भागवत महापुराण)
“भक्ति के नौ अंगों में श्रवण पहले आता है — और श्रावण मास इस श्रवण का श्रेष्ठ समय है।”
ऋतु, पंचांग और अध्यात्म का मिलन
श्रावण मास का आरंभ होता है वर्षा के साथ — यह केवल पर्यावरण की दृष्टि से शुद्धिकाल नहीं, बल्कि अंतःकरण की धुलाई का समय भी है। यह समय है:
- अहंकार को बहा देने का
- वासनाओं को धोने का
- और शिवत्व को हृदय में जाग्रत करने का
ऋतु का जल और तप का ज्वर जब एकत्र हो जाए, तो भक्ति का अमृत बहता है — यही श्रावण मास का तत्त्व है।
श्रावण एक पर्व नहीं, एक यात्रा है
श्रावण मास केवल एक पंचांगीय तिथि नहीं, यह एक जीवन दृष्टि है — जो मनुष्य को श्रवण से चिंतन, और चिंतन से शिवत्व तक ले जाती है। यह समय है जब हर भक्त — चाहे गृहस्थ हो या साधक — शिव की कृपा की छाया में आत्मा को स्नान कराता है।
“श्रावण मास शिव-शक्ति का निमंत्रण है — जहां वर्षा केवल जल की नहीं, कृपा की होती है।”
श्रावण मास में शिव की पूजा क्यों?
शिवपुराण, स्कंदपुराण, और पद्मपुराण के अनुसार:
“श्रावणस्य मासे यः शिवं सम्पूजयेत् नरः।
स सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोकं स गच्छति॥”
अर्थ: “जो मनुष्य श्रावण मास में शिवजी की पूजा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।”
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में शिव भक्ति
श्रीराम स्वयं भगवान शंकर के परम भक्त थे। रामचरितमानस में तुलसीदासजी कहते हैं:
“राम चरन रति हि सबु काहू।
जैसेउं होइ सो हरि के चाहू॥
गिरिजा सहित महेसु पुरारी।
रघुबीरहि सदा करहिं सुखकारी॥” (मानस, बालकाण्ड)
राम स्वयं काशी में विश्वनाथ शिवलिंग की पूजा करते हैं और शिव का आशीर्वाद लेकर रावण-वध हेतु प्रस्थान करते हैं।
इससे स्पष्ट है कि श्रावण मास में शिवभक्ति केवल सनातन वैदिक परंपरा नहीं, बल्कि श्रीराम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम की भी जीवनरीति रही है।
श्रावण सोमवार: भगवान शिव की कृपा का दिवस
श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार अत्यंत पवित्र माना गया है। सोमवार का संबंध चंद्रमा से है, और शिवजी स्वयं चंद्रशेखर (चंद्र को मस्तक पर धारण करने वाले) कहलाते हैं। इस कारण श्रावण सोमवार को शिव उपासना विशेष पुण्यदायक मानी जाती है।
शास्त्रीय प्रमाण:
“श्रावणस्य सोमवारे यः शिवं सम्पूजयेत् नरः।
सोऽश्वमेधसहस्रस्य फलमाप्नोति निश्चितम्॥” (शिवपुराण)
भावार्थ: श्रावण मास में जो भक्त श्रद्धा से शिवजी की पूजा करता है, वह सहस्त्र अश्वमेध यज्ञों के बराबर फल प्राप्त करता है।
श्रावण सोमवार की पूजन विधि:
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें
- शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, बेलपत्र, धतूरा, भस्म आदि से रुद्राभिषेक करें
- “ॐ नमः शिवाय” या “महा मृत्युंजय मंत्र” का जाप करें
- व्रत रखें और रात्रि में शिव पुराण, शिव चालीसा या रुद्राष्टकम का पाठ करें
विशेष: यदि यह दिन प्रदोष व्रत, शिवरात्रि या अमावस्या के साथ संयोग करे तो उसका फल अत्यंत शुभकारी होता है।
रामायण की दृष्टि से: शिव-भक्ति और सोमवार
रामचरितमानस में तुलसीदासजी श्रीराम की ओर से कहते हैं:
“नहिं कोउ जान प्रसन्नता मोरी, सिव दयालु जान सबु कोरी।” (उत्तरकांड)
श्रीराम स्वयं शिव को वंदन करते हैं और रावण-वध के पूर्व काशी में विश्वनाथ की पूजा करते हैं। स्पष्ट है कि श्रावण सोमवार शिवभक्ति का श्रेष्ठ काल है।
श्रावण मास के विशेष दिन — प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत हर पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है और यदि यह तिथि श्रावण मास में पड़े तो इसका फल अनेक गुना बढ़ जाता है।
शिवपुराण में कहा गया है:
“प्रदोषे यः शिवं ध्यायेत्, लिङ्गरूपं महेश्वरम्।
स याति परमं स्थानं, यत्र मोक्षं लभेन्नरः॥”
भावार्थ: “जो प्रदोष के समय शिवलिंग की आराधना करता है, वह मोक्ष और परमानंद को प्राप्त करता है।”
श्रावण में आने वाला सोम प्रदोष (सोमवार को प्रदोष व्रत) तो सर्वश्रेष्ठ व्रतों में एक माना जाता है।
त्रयोदशी तिथि और श्रावण मास का संबंध
शिवपुराण के अनुसार, यह घटना श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुई थी। तभी से यह तिथि और यह मास भगवान शिव के उस परम आत्मत्याग की स्मृति में पवित्र और पूज्य माना जाने लगा।
त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखने की परंपरा भी यहीं से प्रारंभ होती है — जिससे शिव को प्रसन्न कर, उनके समान त्याग और शांति की भावना जागृत की जा सके।
कांवड़ यात्रा: श्रद्धा का तीर्थयात्रा रूप
श्रावण मास में कांवड़ यात्रा एक जन-आंदोलन की भांति होती है, जिसमें भक्तगण हरिद्वार, गंगोत्री, प्रयाग आदि से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा कर शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।
शास्त्रीय आधार:
“गङ्गाजलैस्तु यः भक्त्या रुद्रं सम्पूजयेद्र्णरः।
स मुच्यते पापसंघातैः पुण्यैश्च समलङ्कृतः॥” (शिवपुराण)
भावार्थ: गंगाजल से भक्तिपूर्वक शिव का अभिषेक करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर पुण्य से विभूषित होता है।
कांवड़ यात्रा के प्रमुख तत्त्व:
- शुद्धता: व्रत, संयम और ब्रह्मचर्य
- निःस्वार्थता: बिना किसी अपेक्षा के सेवा
- सामूहिकता: ‘बोल बम’ की ध्वनि में समरसता
- साधना: शरीर, मन और आत्मा तीनों का समर्पण
अन्य ग्रंथों की दृष्टि से भी श्रावण मास का संदेश है:
भागवत महापुराण:
विष्णु स्वयं कहते हैं कि शिव ही ऐसे हैं जो जगत के संकटों को अपने ऊपर लेते हैं।
महाभारत (अनुशासन पर्व):
पितामह भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं कि श्रावण मास में शिव की आराधना से ही धर्मराज्य की स्थापना संभव है।
रामायण:
श्रीराम ने भी स्वयं शिव के नीलकंठ स्वरूप को स्मरण कर यज्ञ और दान का कार्य आरंभ किया।
श्रावण में क्या करें? — परंपराएँ और उपासना विधि
1. रुद्राभिषेक करें
रुद्राभिषेक का महत्व शिवपुराण, यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी, और स्कंदपुराण में भी बार-बार बताया गया है। इसमें शिवलिंग पर पंचामृत, गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, शहद, दूध, दही, घी आदि से अभिषेक किया जाता है।
शिवपुराण में लिखा है:
“रुद्राभिषेकसमं पुण्यं न विद्यते महीतले।”
“रुद्राभिषेक के समान कोई पुण्य इस पृथ्वी पर नहीं है।”
2. बिल्वपत्र अर्पण करें
बिल्वपत्र शिवजी को अत्यंत प्रिय है। इसकी तीन पत्तियाँ त्रिपुण्ड्र (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक हैं।
शिवपुराण में कहा गया है:
“बिल्वपत्रं समर्प्यैव सर्वतीर्थफलं लभेत्।
दशकोट्याश्वमेधानां फलमाप्नोति मानवः॥”
“जो भक्त शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाता है, वह दस करोड़ अश्वमेध यज्ञों के फल को प्राप्त करता है।”
3. सोमवार व्रत करें, विशेषकर श्रावण सोमवार
- श्रद्धा से उपवास या फलाहार करें
- दिनभर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें
- सायंकाल शिव मंदिर जाकर रुद्राभिषेक करें
4. शिवपुराण, रामचरितमानस और भागवत का पाठ करें
श्रवण और श्रवण करने — दोनों से पुण्य मिलता है। इस माह में कथा-श्रवण, सत्संग और कीर्तन अत्यंत फलदायी हैं।
भागवत महापुराण की दृष्टि से
श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 4, अध्याय 6) में भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं:
“शिवो मे प्रियतमो नित्यं तस्य नामस्मृतिर्मम यज्ञः।”
भावार्थ: “भगवान शिव मेरे लिए सदा प्रिय हैं, और उनका नाम स्मरण मेरे लिए यज्ञ के समान है।”
इसका अर्थ है कि भगवान विष्णु के भक्तों के लिए भी शिव-भक्ति श्रेयस्कर और अनुमोदित है।
निष्कर्ष: श्रावण मास की भक्ति — एक चेतना, एक संस्कृति
श्रावण मास हमें केवल पूजा-पाठ का अवसर नहीं देता, बल्कि यह आत्मत्याग, धैर्य और करुणा की साधना का काल है।
जिस समय संसार संकट में था, उस समय भगवान शिव ने उसे अपने भीतर समा लिया — पर कभी शिकायत नहीं की। यही भाव श्रद्धा को शिवत्व में बदल देता है।
“श्रावण शिव का है, क्योंकि विष की धधकती रात में भी उन्होंने प्रेम का अमृत बरसाया।”