सावन शुक्ल प्रदोष व्रत 2025 – शिव की कृपा पाने का श्रेष्ठ अवसर

प्रदोष व्रत: शिवभक्ति की संध्या साधना
हिन्दू धर्म में ‘प्रदोष व्रत’ को एक अत्यंत पुण्यदायक और प्रभावशाली व्रत माना गया है। ‘प्रदोष’ का अर्थ है दोषों का नाश करने वाला काल, और इसे सूर्यास्त से पूर्व का समय, अर्थात संध्या वेला का प्रतीक माना गया है। यह वह समय होता है जब भगवान शिव अपने तांडव रूप में कैलाश पर विचरण करते हैं और भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं।
शिवपुराण के अनुसार:
“संध्यायामेव सम्प्राप्ते, शंभुर्भक्ताभिलाषितः।
प्रदोषे पूजितो यस्य, तस्य पापं न विद्यते॥”
अर्थात – जो व्यक्ति प्रदोषकाल में भगवान शंकर की पूजा करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
6 अगस्त 2025 – सावन शुक्ल प्रदोष व्रत का विशेष संयोग
इस वर्ष सावन शुक्ल त्रयोदशी तिथि बुधवार को आ रही है, जिसे ‘बुध प्रदोष’ भी कहा जाता है। चूँकि यह श्रावण मास में पड़ रही है, इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। सावन स्वयं शिवभक्ति का सर्वोत्तम महीना है, और इस महीने में किया गया प्रदोष व्रत भक्त को विशेष पुण्यफल प्रदान करता है।
प्रदोष काल: सायं 6:50 PM से 8:52 PM तक
नक्षत्र योग: शुभ नक्षत्र एवं चंद्रमा का वृषभ राशि में गोचर – फल सिद्धि हेतु अनुकूल
प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा — जीवन बदलने वाली एक ब्राह्मणी की कथा
स्कंद पुराण व लोककथाओं के अनुसार:
एक बार एक निर्धन ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ जीवन यापन हेतु भिक्षा मांगती थी। एक दिन उसे मार्ग में एक घायल राजकुमार मिला, जिसे वह अपने घर ले आई और सेवा की। ब्राह्मणी नियमित रूप से प्रदोष व्रत करती थी और भगवान शिव की पूजा करती थी।
उसी नगर में एक गंधर्व कन्या अंशुमति भी रहती थी। उसने राजकुमार को देखा और स्वप्न में भगवान शिव के आदेश से उससे विवाह कर लिया। भगवान शिव की कृपा से राजकुमार ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया और ब्राह्मण पुत्र को मंत्री नियुक्त किया।
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि प्रदोष व्रत केवल रोग, शोक या दरिद्रता ही नहीं मिटाता, अपितु भाग्य की दिशा भी परिवर्तित कर सकता है।
प्रदोष व्रत का महत्व — शिव पुराण व स्कंद पुराण की दृष्टि से
शिवपुराण:
“प्रदोषे यः शिवार्चां करोति भक्तिसंयुतः।
स याति परमं स्थानं यत्र मोक्षं लभेन्नरः॥”
अर्थ: जो व्यक्ति श्रद्धा से प्रदोषकाल में भगवान शिव की पूजा करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
स्कंदपुराण:
“त्रयोदश्यां तु यो भक्त्या शम्भोः पूजनमाचरेत्।
सर्वान् कामानवाप्नोति शंकरस्य प्रसादतः॥”
अर्थ: त्रयोदशी के दिन जो भक्त श्रद्धा से भगवान शंकर की पूजा करता है, वह अपने सभी मनोरथों को सिद्ध कर लेता है।
प्रदोष व्रत की पूजन विधि
- व्रत प्रारंभ:
- सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें
- व्रत का संकल्प लें — “शिव कृपा हेतु प्रदोष व्रत का पालन करूंगा”
- पूजन सामग्री:
- शिवलिंग या चित्र
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
- गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, सफेद पुष्प
- दीपक, अगरबत्ती, नैवेद्य व भोग
- अभिषेक विधान:
- पंचामृत से स्नान, फिर गंगाजल से शुद्धिकरण
- बेलपत्र अर्पण (खंडित न हो, तीन पत्तियों वाला हो)
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जप
- शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्राष्टक का पाठ
- कथा श्रवण व आरती:
- प्रदोष व्रत कथा सुनें/पढ़ें
- दीपक जलाकर आरती करें
- भोग अर्पण करें (दूध, मावा, फल, सात्विक मिठाई)
- व्रत पूर्ति व दान:
- ब्राह्मण या गरीब को वस्त्र, अन्न या दक्षिणा का दान
- रात्रि को शिव स्तुति करते हुए सोना शुभ
प्रदोष व्रत के लाभ — आध्यात्मिक, मानसिक और सांसारिक
- रोग, शोक, और मानसिक व्याधियों से मुक्ति
- कर्ज़, दरिद्रता और पारिवारिक क्लेशों का अंत
- सुखद वैवाहिक जीवन और संतान सुख की प्राप्ति
- मन की शुद्धि, पापों का क्षय और आत्मिक विकास
- मोक्ष की प्राप्ति और अगले जन्मों की शुद्धि
विशेष संदेश: प्रदोष व्रत – पापों के क्षय और पुण्य की प्राप्ति का ब्रह्म काल
श्रावण शुक्ल प्रदोष व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह आत्मा के भीतर शिव तत्व को जागृत करने का प्रयास है। यह व्रत हमें संयम, भक्ति, सेवा और त्याग की भावना सिखाता है। जब हम भगवान शिव की आराधना प्रदोष काल में करते हैं, तो यह ध्यान, मंत्र और भाव – तीनों का अद्भुत संगम बन जाता है।
शिवपुराण में उल्लेख है:
“श्रद्धया यः प्रदोषे तु, शिवपूजां विधिनाऽचरेत्।
स याति शिवलोकं च, पुनर्जन्म न विद्यते॥”
निष्कर्ष:
6 अगस्त 2025 को आने वाला सावन शुक्ल प्रदोष व्रत शिव कृपा प्राप्त करने का दुर्लभ अवसर है। यदि इस दिन आप विधिपूर्वक व्रत रखें, पूजा करें और अपने कर्मों की शुद्धि का संकल्प लें, तो निश्चित ही भगवान शिव आपके जीवन की दिशा को शुभता की ओर मोड़ देंगे।
हर हर महादेव!
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे…” — इस मंत्र की शक्ति को आत्मा में अनुभव करें।