सप्त मातृकाएँ कौन-कौन सी हैं? माँ शक्ति के सात दिव्य स्वरूप

सनातन धर्म में माँ शक्ति की महिमा असीम है। वही शक्ति जब ब्रह्मांड के संतुलन के लिए सात रूपों में प्रकट होती है, तो उन्हें ‘सप्त मातृकाएँ’ कहा जाता है। ये माताएँ केवल देवी दुर्गा की शक्तियाँ ही नहीं, बल्कि उन दिव्य ऊर्जाओं का प्रगटीकरण हैं जो जीवन को संभालती हैं—कभी ममता बनकर, कभी वीरता बनकर, कभी रक्षा बनकर, तो कभी संहार बनकर।

मत्स्यपुराण, विष्णुधर्मोत्तरपुराण, देवीमहात्म्य, मार्कण्डेय पुराण, पद्म पुराण और शिवपुराण जैसे अनेक ग्रंथ इन माताओं का वर्णन करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जब देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई, जब असुरों का आतंक बढ़ा और अंधकासुर व रक्तबीज जैसे राक्षसों ने लोक-व्यवस्था को डिगा दिया, तब देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन सात माताओं को उत्पन्न किया।

हर मातृका किसी एक देवता के तेज से प्रकट हुई है—और इसीलिए ये देवत्व और शक्ति का अद्भुत संगम मानी जाती हैं।

नेपाल और कुछ शाक्त परंपराओं में आठवीं मातृका नारसिंही या विनायकी का भी उल्लेख मिलता है, जो मातृ परंपरा की व्यापकता को दर्शाता है।

1. माता ब्राह्मणी

माता ब्राह्मणी, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की सर्वोच्च शक्ति मानी जाती हैं। उनका स्वरूप इतना शुद्ध, शांत और प्रकाशमयी है कि वे देखते ही हृदय में पवित्रता का संचार कर देती हैं।
मत्स्यपुराण में कहा गया है कि जब ब्रह्मा की शक्ति पृथ्वी पर प्रकट हुई, तो वह न केवल ज्ञान का प्रतीक बनी, बल्कि सृष्टि की मूल ‘प्राण-ऊर्जा’ के रूप में प्रतिष्ठित हुई।

उनका वाहन हंस विवेक, शुद्धता और सत्य की खोज का प्रतीक है।
हाथों में वेद, जपमाला, कमंडल और रुद्राक्ष धारण किए उनका स्वरूप यह शिक्षा देता है कि संसार का मूलाधार ज्ञान है।

शास्त्रों में कहा गया है—

“विद्या ब्राह्मणि नित्यं, सृष्टि-शक्ति: स्वयं शिवा।”

अर्थात, ब्राह्मणी वह शक्ति हैं जो सत्य का प्रकाश जगाती हैं और मनुष्य को धर्ममार्ग की ओर ले जाती हैं।
इनकी कृपा से अज्ञान मिटता है, बुद्धि निर्मल होती है और साधक में चित्त की स्थिरता उत्पन्न होती है।

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2. माता वैष्णवी

माता वैष्णवी, भगवान विष्णु की पालन-शक्ति हैं।
उनके रूप में ‘धर्म की रक्षा’ और ‘जीवन को संतुलित रखना’—दोनों गुण एक साथ मिलते हैं।

देवीमहात्म्य में वर्णित है कि जब देवी ने असुरों को परास्त करने के लिए देवताओं से शक्तियाँ ग्रहण कीं, तब विष्णु के तेज से माता वैष्णवी प्रकट हुईं।
वे गरुड़ पर आरूढ़, शंख, चक्र, गदा और पद्म से सुसज्जित दिखाई देती हैं।

  • शंख—धर्म और जीवन की शुभता
  • चक्र—अन्याय का विनाश
  • गदा—शक्ति और दृढ़ता
  • पद्म—शांति और करुणा

विष्णुधर्मोत्तरपुराण में यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि वैष्णवी साधक के जीवन में स्थिरता, संयम, मानसिक शांति और जीवन-संतुलन स्थापित करती हैं।
कठिन परिस्थितियों में वे संरक्षक बनकर खड़ी होती हैं।

इनकी कृपा से मनुष्य का मन शांत और हृदय धैर्यवान बनता है।

3. माता माहेश्वरी

माहेश्वरी, भगवान शिव की उग्र और गहन शक्तियों का विस्तार हैं।
इनका स्वरूप शक्तिशाली, गंभीर और तपोमयी है। नंदी वाहन, त्रिशूल, डमरू, चंद्र-फलक और नाग की अलंकारिक सज्जा इनकी ‘तप’ और ‘संहार’ ऊर्जा को दर्शाती है।

देवीमहात्म्य में उल्लेख है कि शिव के तेज से प्रकट हुई माहेश्वरी ने युद्धभूमि में असुरों का नाश कर देवताओं की रक्षा की।
वे साधक के भीतर भीतर की नकारात्मकताओं, भय, भ्रम और दुष्प्रवृत्तियों का संहार करती हैं।

शिवपुराण कहता है—
“माहेश्वरी शक्ति: सर्वविघ्ननाशिनी।”
अर्थात, वे हर प्रकार के विघ्न और जड़ताओं का नाश करती हैं।

माहेश्वरी का एक गूढ़ संदेश है—
“पुराने का संहार ही नए की शुरुआत बनता है।”

4. माता कौमारी

कौमारी माता, देवसेनापति कार्तिकेय की शक्ति हैं—इसलिए उनका रूप बाल-युवा शक्ति का प्रतीक है।
उनका वाहन मोर है, जो विजय, सुंदरता और रणनीति का प्रतीक माना जाता है। हाथों में शक्ति-अस्त्र, भाला और कभी-कभी धनुष भी दिखाया गया है।

विष्णुधर्मोत्तरपुराण में कहा गया है कि कौमारी का तेज अत्यंत प्रखर है—वे साधक के भीतर छिपी वीरता को प्रकट करती हैं।

कौमारी तीन प्रमुख वरदान देती हैं—

  1. साहस
  2. विजय
  3. आत्मबल

इनकी उपासना उन व्यक्तियों के लिए अत्यंत फलदायी है जो निरंतर संघर्षों से जूझ रहे हैं, मानसिक या आध्यात्मिक रूप से कमजोर महसूस करते हैं और जीवन में जीत की ऊर्जा चाहते हैं

कौमारी सिखाती हैं कि साहस केवल युद्ध नहीं, बल्कि स्वयं के भय से लड़ने का नाम है।

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5. माता वाराही

सप्त मातृकाओं में वाराही सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं।
वे भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति हैं—इसलिए उनका मुख वराह (सूअर) के समान और शरीर देवी का होता है।

मत्स्यपुराण में वर्णित है कि माता वाराही ने युद्ध में वह उग्र रूप धारण किया कि असुरों का मनोबल क्षीण हो गया।
हल और मुसल धारण करने का अर्थ है कि वे कठिन परिश्रम,धरती की रक्षा,और छिपे हुए शत्रुओं का नाश का प्रतीक हैं।

शाक्त परंपराओं में कहा जाता है कि वाराही साधना अत्यंत गुप्त और प्रभावशाली होती है।
ये देवी अदृश्य बाधाओं, नकारात्मक ऊर्जाओं, दुष्ट शक्तियों  का संहार कर साधक को सुरक्षित रखती हैं।

वाराही का स्वरूप बताता है कि धैर्य और परिश्रम ही जीवन के सबसे बड़े अस्त्र हैं।

6. माता इन्द्राणी 

इन्द्राणी (या शाची) देवेंद्र इंद्र की शक्ति हैं।
ऐरावत हाथी पर आरूढ़, वज्र धारण किए उनका रूप प्रभाव, शक्ति और राजसी आभा से भरा हुआ होता है।

देवीमहात्म्य में वर्णन है कि इन्द्राणी ने अपने वज्र से अनेक असुरों का संहार किया और देवताओं का मनोबल ऊँचा किया।

इन्द्राणी तीन वर प्रदान करती हैं—

  1. यश
  2. प्रतिष्ठा
  3. सामाजिक प्रभाव

इनकी उपासना से व्यक्ति में आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता, प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ता है।

शास्त्रों में कहा गया है—
“इन्द्राणी बलदा नृणाम्।”
अर्थात, इन्द्राणी मनुष्य को शक्ति और आत्मबल प्रदान करती हैं।

7. माता चामुंडा

चामुंडा सप्त मातृकाओं में सबसे उग्र, सबसे तेजस्वी और सबसे प्रचंड शक्ति हैं।
वे देवी काली का ही रूप हैं—लेकिन उनसे भी अधिक उग्र।

उनका निवास श्मशान है, और वे खप्पर, त्रिशूल तथा उससे टपकते रक्त को धारण करती हैं।
यह स्वरूप भले ही भयानक लगे, लेकिन भक्तों के लिए यह अज्ञान-विनाश और भय-नाश की प्रतीक है।

देवीमहात्म्य में वर्णित रक्तबीज-वध में चामुंडा की भूमिका निर्णायक है—उन्होंने असुरों का नाश कर देवताओं की रक्षा की।

पद्मपुराण कहता है—
“भक्तानाम् भयहरणी चामुण्डा सर्वदा स्मृता।”
अर्थात, चामुंडा का स्मरण ही भय को समाप्त कर देता है।

चामुंडा साधक को मृत्यु-भय से मुक्ति, भीतर की नकारात्मकता का नाश, और आध्यात्मिक जागृति का वर देती हैं।इनका संदेश है—
“जो अपने भय से लड़ गया, वह संसार से जीत गया।”

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