भगवान धनवंतरी की पूजा विधि, और धार्मिक महत्व

धनतेरस, दीपावली का प्रथम दिवस, हिंदू धर्म में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, क्योंकि यह कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। पद्म पुराण, स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में धनतेरस का विशेष महत्व वर्णित है। इस दिन भगवान धनवंतरी, जो भगवान विष्णु के अवतार और आयुर्वेद के अधिष्ठाता देवता हैं, की पूजा की जाती है।

पूजा की तैयारी (Preparation for Dhanteras Puja)

धनतेरस की पूजा से पूर्व प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें, शुद्ध वस्त्र धारण करें और घर को स्वच्छ कर फूलों व रंगोली से सजाएँ। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में पूजा करना अत्यंत शुभ होता है, अतः पूजा स्थल उसी दिशा में तैयार करें।

Read Also: 2025 में धनतेरस कब है? तिथि,और शुभ मुहूर्त 

पूजा के समय मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। परिवार के सभी सदस्य मिलकर सामूहिक रूप से पूजा करें। पूजा स्थल पर भगवान धनवंतरी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, जिसमें वे अमृत कलश धारण किए हुए हों। पूजा सामग्री में हल्दी, कुंकुम, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तुलसी पत्र, पान-सुपारी आदि रखें।

पंचदेव की स्थापना का महत्व (Significance of Panchdev Worship)

पूजा प्रारंभ करने से पूर्व पंचदेव — सूर्यदेव, श्रीगणेश, माता दुर्गा, भगवान शिव और भगवान विष्णु — की स्थापना करें। स्कंद पुराण के अनुसार, पंचदेव पूजन से सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं और पूजा फलवती होती है। इनकी छोटी प्रतिमाएँ या चित्र पूजा स्थल पर स्थापित करें और धूप-दीप से आराधना करें।

पूजा के समय शांत वातावरण रखें, भक्ति भाव से मंत्रोच्चार करें और धनवंतरी देव का ध्यान करें।

षोडशोपचार पूजा विधि (Detailed Dhanvantari Puja Vidhi)

धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा षोडशोपचार विधि से करनी चाहिए। यह विधि गरुड़ पुराण और देवी भागवत पुराण में वर्णित है, जिसमें 16 प्रकार की सेवाएँ अर्पित की जाती हैं:

पाद्य (चरण धोना), अर्घ्य (जल अर्पण), आचमन (शुद्ध जल पीना), स्नान (पंचामृत से), वस्त्र (नवीन वस्त्र अर्पण), आभूषण (श्रृंगार), गंध (चंदन लगाना), पुष्प (फूल चढ़ाना), धूप (अग्नि अर्पण), दीप (प्रकाश अर्पण), नैवेद्य (भोजन अर्पण), आचमन पुनः, ताम्बुल (पान), स्तवपाठ (मंत्रोच्चार), तर्पण (जल अर्पण) और नमस्कार (प्रणाम)

पूजा प्रारंभ करने से पहले संकल्प लें—

“ॐ विष्णु प्रीत्यर्थं धन्वंतरि पूजनं करिष्ये।”

भगवान धनवंतरी के मस्तक पर हल्दी, कुंकुम, चंदन और अक्षत लगाएँ, पुष्पमालाएँ चढ़ाएँ और दीप प्रज्वलित करें। अनामिका उंगली से चंदन और कुंकुम अर्पण करना शुभ माना जाता है।

Read Also: 2025 में दीपावली पूजन कब है? लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त

भगवान धनवंतरी के मंत्र (Dhanvantari Mantras)

पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का 108 बार जाप करना अत्यंत फलदायक माना गया है:

“ॐ धन्वंतरये नमः।”

या विस्तृत मंत्र —
“ॐ नमो भगवते धन्वंतरये अमृतकलशहस्ताय
सर्वामयविनाशनाय सर्वौषधि प्रभवाय
सर्वरोग निवारकाय त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे नमः।”

यह मंत्र पद्म पुराण और गरुड़ पुराण में वर्णित है। इसका जाप करने से शारीरिक रोग, मानसिक विकार और आर्थिक कष्ट दूर होते हैं।

नैवेद्य और आरती

पूजन पूर्ण होने के बाद भगवान धनवंतरी को नैवेद्य अर्पित करें। नैवेद्य में सात्त्विक भोजन रखें — मिठाई, फल, खीर आदि। वायु पुराण के अनुसार, नैवेद्य में नमक, मिर्च और तेल का उपयोग नहीं किया जाता। प्रत्येक पकवान पर तुलसी पत्र अवश्य रखें क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अर्पित सबसे पवित्र पत्र है।

इसके बाद भगवान धनवंतरी की आरती करें और फिर नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन करें। अंत में परिवार के सदस्यों में प्रसाद वितरित करें।

प्रदोष काल में दीप प्रज्वलन

मुख्य पूजा के बाद प्रदोष काल (संध्या समय) में घर के द्वार या आंगन में दीप प्रज्वलित करें। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन यमराज के नाम से एक यम दीपम की परंपरा है, जो अकाल मृत्यु से रक्षा करता है।

रात्रि में घर के सभी कोनों में दीप जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में शांति और सकारात्मकता का वास होता है।

धनतेरस का महत्व (Significance of Dhanteras)

धनतेरस केवल धन प्राप्ति का पर्व नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, समृद्धि और आरोग्य का उत्सव है। पद्म पुराण में धनवंतरी देव को “सर्वामय विनाशन” कहा गया है — अर्थात जो सभी रोगों और कष्टों का नाश करते हैं।

इस दिन भगवान धनवंतरी की आराधना करने से परिवार में रोगों का निवारण, मानसिक शांति, धन-धान्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। घर में लक्ष्मी और कुबेर की कृपा भी बनी रहती है।

धनतेरस का यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि सच्चा धन केवल धन-संपत्ति नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, संतोष और कर्तव्य-पालन है।

निष्कर्ष

धनतेरस का यह पर्व, भगवान धनवंतरी की पूजा और आराधना का सर्वोत्तम अवसर है। इस दिन विधिपूर्वक षोडशोपचार पूजन, दीप प्रज्वलन और मंत्रजाप करने से जीवन में धन, आरोग्य, दीर्घायु और शांति का संचार होता है। यह पर्व केवल भौतिक समृद्धि का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है।

Scroll to Top