शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती है और यह परंपरा कब से शुरू हुई?

शारदीय नवरात्रि

शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है। यह माँ दुर्गा की उपासना का पर्व है, जिसमें भक्त नौ दिनों तक माँ के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। यह पर्व हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है और दसवें दिन विजयादशमी (दशहरा) के रूप में इसका समापन होता है।

लेकिन सवाल यह है कि शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती है और इसकी परंपरा कब से शुरू हुई? इसके उत्तर हमें पौराणिक ग्रंथों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलते हैं।

शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

1. माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर वध

शारदीय नवरात्रि का सबसे प्रमुख कारण माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसका वध किसी भी पुरुष, देव या असुर द्वारा नहीं हो सकेगा। वरदान से अहंकारी होकर उसने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया।

देवताओं ने मिलकर अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाया और एक देवी की रचना हुई — वही थीं माँ दुर्गा (आदिशक्ति)। माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। इस विजय दिवस को ही विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।

2. रामायण से जुड़ी परंपरा

रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले शारदीय नवरात्रि में माँ दुर्गा की उपासना की थी। उन्होंने 108 नीले कमल अर्पित करने का संकल्प लिया था, लेकिन एक कमल की कमी होने पर उन्होंने अपना नेत्र (कमलनयन) अर्पित करने का निश्चय किया। माँ दुर्गा उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। इसके बाद दशमी के दिन श्रीराम ने रावण का वध किया।

इसी कारण शारदीय नवरात्रि को शक्ति की उपासना और विजय की साधना का पर्व माना जाता है।

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3. ऋतु परिवर्तन और शक्ति उपासना

नवरात्रि वर्ष में दो बार आती है — चैत्र (वसंत) और आश्विन (शरद ऋतु)
ऋतु परिवर्तन के इन अवसरों पर शरीर और मन दोनों को सात्विक रखने, तप, व्रत और संयम का पालन करने की परंपरा रही है। शरद ऋतु का यह पर्व आत्मशुद्धि और शक्ति की साधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

नवरात्रि की परंपरा कब से शुरू हुई?

नवरात्रि का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण, देवी भागवत पुराण, स्कंद पुराण और रामायण सहित कई ग्रंथों में मिलता है।

  • वैदिक काल से प्रारंभ : ऋग्वेद में “उषा” और “अदिति” को शक्ति स्वरूपा कहा गया है। शक्ति की उपासना के रूप में नवरात्रि की परंपरा वैदिक काल से ही रही है।
  • पुराणों में उल्लेख : मार्कण्डेय पुराण में वर्णित “देवी महात्म्य” (दुर्गा सप्तशती) नवरात्रि के अनुष्ठानों का आधार है। इसमें माँ दुर्गा की शक्तियों और असुर-वध की कथाएँ विस्तार से बताई गई हैं।
  • त्रेता युग से संबंध : रामायण के अनुसार, त्रेता युग में श्रीराम ने शारदीय नवरात्रि का अनुष्ठान किया। इसे ही शारदीय नवरात्रि की परंपरा का सबसे बड़ा आरंभिक प्रमाण माना जाता है।
  • सांस्कृतिक परंपरा : समय के साथ यह पर्व केवल धार्मिक ही नहीं रहा, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी विकसित हुआ। आज भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है — जैसे बंगाल में दुर्गा पूजा, गुजरात में गरबा और डांडिया, उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा।

शारदीय नवरात्रि का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  • यह पर्व हमें सिखाता है कि धर्म और सत्य की हमेशा विजय होती है।
  • शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं हैं, यह नारी शक्ति का उत्सव है, जो हमें जीवन में स्त्री के महत्व और उसकी ऊर्जा का स्मरण कराता है।
  • नवरात्रि के दौरान संयम, उपवास और सात्विक जीवन जीने से शरीर और मन की शुद्धि होती है।
  • यह पर्व पूरे समाज को जोड़ता है — सामूहिक पूजन, गरबा, रामलीला और दुर्गा विसर्जन इसके सांस्कृतिक पहलू हैं।

निष्कर्ष

शारदीय नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह शक्ति, भक्ति और विजय का उत्सव है। इसकी परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है, जब श्रीराम ने माँ दुर्गा की पूजा कर रावण पर विजय प्राप्त की थी। इसके साथ ही माँ दुर्गा के महिषासुर वध की गाथा इस पर्व को और भी पवित्र और महत्वपूर्ण बनाती है।

आज भी नवरात्रि हमें प्रेरित करती है कि हम अपने भीतर की नकारात्मकताओं का वध करें, सत्य और धर्म का पालन करें, और शक्ति की उपासना कर जीवन में विजय और समृद्धि प्राप्त करें।

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