सावन पूर्णिमा पर क्यों होता है ऋषि तर्पण? जानें इसकी विधि और लाभ

सावन मास हिन्दू धर्म का अत्यंत पावन और शुभ महीना माना जाता है। यह महीना भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। इस मास के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान और व्रत किए जाते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण और प्राचीन परंपरा है – ऋषि तर्पण। सावन पूर्णिमा के दिन ऋषि तर्पण करने का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन ऋषियों और पूर्वजों की पूजा-अर्चना करके उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

ऋषि तर्पण का उल्लेख विभिन्न ग्रंथों में प्राप्त होता है। मनुस्मृति, गृह्यसूत्र, और स्कंद पुराण में बताया गया है कि यह अनुष्ठान ऋषि, देवता और पितरों को तृप्त करने का सबसे श्रेष्ठ मार्ग है। यह परंपरा वेदों में वर्णित “ऋषि ऋण” की अभिव्यक्ति भी है, जिसके अनुसार हर मनुष्य पर ऋषियों का ऋण होता है क्योंकि उन्हीं की कृपा से हमें ज्ञान और धर्म की परंपरा मिली है।

ऋषि तर्पण क्या है?

ऋषि तर्पण एक पवित्र धार्मिक क्रिया है, जिसमें हम ऋषियों, मुनियों और अपने पूर्वजों को जल अर्पित करते हैं। यह क्रिया खासकर सावन मास की पूर्णिमा को की जाती है। ‘तर्पण’ का अर्थ है जल से तृप्त करना, यानी जल अर्पित कर उन्हें खुश करना।

ऋषि तर्पण के माध्यम से हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पुराणों और वेदों में ऋषि तर्पण का उल्लेख मिलता है और इसे पितृ तर्पण से भी जोड़ा जाता है। ऋषि तर्पण में उन ऋषियों और मुनियों को याद किया जाता है, जिन्होंने धर्म, ज्ञान और संस्कृति की स्थापना की।

संदर्भ: तैत्तिरीय आरण्यक में कहा गया है –
“ऋषिभ्यो नमः, पितृभ्यश्च नमः।”
अर्थात्, हमारे जीवन के हर क्षण में हमें ऋषि और पितरों का स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।

इस क्रिया से व्यक्ति के मन को शांति मिलती है, उसके पाप धुल जाते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

सावन पूर्णिमा पर ऋषि तर्पण का महत्व

सावन मास भगवान शिव को समर्पित होता है। इस मास में प्रकृति अपने संपूर्ण सौंदर्य में होती है, और सभी प्रकार के अनुष्ठान फले-फूलते हैं। सावन पूर्णिमा का दिन अत्यंत शुभ माना गया है क्योंकि इस दिन सूर्य की किरणें ऋषि वंश के लिए विशेष होती हैं। यह दिन ऋषियों की पूजा और तर्पण के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

पुराणों में कहा गया है कि सावन पूर्णिमा के दिन ऋषि और देवता पृथ्वी के समीप रहते हैं। इस समय किया गया तर्पण शीघ्र फलदायी होता है। स्कंद पुराण में वर्णित है –
“ऋषितर्पणं ये कुर्युः श्रावणे पूर्णिमायाम्।
तेषां पुण्यफलं वाच्यं कोटियज्ञफलं स्मृतम्॥”
अर्थात्, जो लोग श्रावण पूर्णिमा को ऋषि तर्पण करते हैं, उन्हें करोड़ों यज्ञों के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस दिन ऋषि तर्पण करने से व्यक्ति के मन की अशांति दूर होती है, जीवन में सुख-शांति आती है और पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही यह अनुष्ठान जीवन में आने वाली बाधाओं को भी दूर करता है।

ऋषि तर्पण की विधि

ऋषि तर्पण करते समय शुद्धता और श्रद्धा का ध्यान रखना आवश्यक है। इसकी विधि इस प्रकार है –

आवश्यक सामग्री:

  • स्वच्छ जल (गंगा जल या किसी पवित्र नदी का जल हो तो उत्तम)
  • कच्चा चावल (सफेद या लाल चावल)
    तिल के बीज
  • सुपारी (यदि संभव हो)
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
  • साफ आसन (तुलसी या पवित्र स्थल पर बैठना उत्तम)
  • ऋषियों के नाम (जिनका तर्पण करना है)

विधि:

  1. सबसे पहले एक साफ स्थान पर बैठ जाएं। यदि संभव हो तो पवित्र नदी के तट या तीर्थ स्थल पर बैठना सर्वोत्तम है।
  2. हाथों में जल लेकर अपने ऋषियों के नाम उच्चारण करते हुए जल में तिल और चावल डालें।
    अब धीरे-धीरे जल को अपने हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगलियों के बीच से बहाएं, जैसे आप उन्हें जल अर्पित कर रहे हों।
  3. प्रत्येक ऋषि के नाम के साथ यह क्रिया दोहराएं, जैसे –
    “ऋषि मुनि तर्पणाय स्वाहा।”
  4. यदि संभव हो तो पंचामृत से भी तर्पण करें, जो ऋषि तर्पण की महत्ता को और बढ़ाता है।
  5. अंत में भगवान शिव का स्मरण करें और उनसे अपने पूर्वजों और ऋषियों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।

संदर्भ: मनुस्मृति में कहा गया है –
“पितृऋणं च देवानां ऋषिभ्यश्च निवार्यते।
तर्पणेनैव पुरुषः पवित्रो भवति ध्रुवम्॥”
अर्थात्, पितरों, देवताओं और ऋषियों के प्रति ऋण तर्पण से ही समाप्त होता है और इससे मनुष्य पवित्र होता है।

ऋषि तर्पण मंत्र और उनके अर्थ

ऋषि तर्पण के दौरान मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य है। ये मंत्र ऋषियों को स्मरण कर उनकी कृपा प्राप्त करने का माध्यम बनते हैं। सावन पूर्णिमा के दिन निम्न मंत्रों का जाप करें –

  1. सप्तऋषि मंत्र:
    “कश्यपाय नमः, अत्रये नमः, भारद्वाजाय नमः, विश्वामित्राय नमः, गौतमाय नमः, जमदग्नये नमः, वशिष्ठाय नमः।”
    अर्थ: सप्तऋषियों का स्मरण कर उन्हें प्रणाम।
    सामान्य तर्पण मंत्र:
    “ॐ ऋषिभ्यो नमः स्वधा।”
    अर्थ: सभी ऋषियों को नमस्कार और श्रद्धापूर्वक तर्पण अर्पित।
  2. पितृ तर्पण मंत्र (यदि पूर्वजों को भी तर्पण कर रहे हैं):
    “ॐ पितृभ्यो नमः स्वधा।”
    अर्थ: पितरों को जल अर्पित कर उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना।
  3. भगवान शिव का स्मरण मंत्र:
    “ॐ नमः शिवाय।”
    अर्थ: भगवान शिव को प्रणाम, जो सभी ऋषियों के आदिदेव हैं।

सावन पूर्णिमा पर ऋषि तर्पण के लाभ

  1. पूर्वजों की आत्मा को शांति: ऋषि तर्पण करने से पितृ और ऋषि स्वरूप आत्मा को तृप्ति और शांति प्राप्त होती है।
    पापों का क्षय: यह अनुष्ठान व्यक्ति के पापों को धुलने में मदद करता है और मन को शुद्ध करता है।
  2. सुख-शांति और समृद्धि: सावन पूर्णिमा के दिन ऋषि तर्पण करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  3. धार्मिक पुण्य की प्राप्ति: ऋषि तर्पण को करोड़ों यज्ञों के समान फलदायी माना गया है।
  4. आध्यात्मिक जागरण: इस तर्पण से मन का ध्यान बढ़ता है और व्यक्ति का आध्यात्मिक जागरण होता है।

संदर्भ: तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहा गया है कि ऋषि तर्पण करने वाला व्यक्ति देवताओं और पितरों की कृपा का पात्र बनता है और जीवन में समृद्धि एवं ऐश्वर्य प्राप्त करता है।

निष्कर्ष

यह पवित्र अनुष्ठान हमें अपने संस्कारों से जोड़ता है और जीवन के कष्टों से मुक्त करता है। अतः इस सावन पूर्णिमा पर समय निकालकर विधिपूर्वक ऋषि तर्पण अवश्य करें और अपने परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करें।

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