नाग पंचमी 2025: नागों की महिमा, उत्पत्ति और धार्मिक रहस्य

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह तिथि वर्ष 2025 में 29 जुलाई को पड़ेगी। नाग पंचमी केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि प्रकृति, जीवन संरक्षण और पौराणिक चेतना से जुड़ा एक सांस्कृतिक पर्व भी है। यह दिन विशेष रूप से नागों की पूजा के लिए समर्पित होता है — जो हिन्दू धर्म में अद्भुत शक्ति, रहस्य और दैवत्व के प्रतीक माने गए हैं।
नाग और सर्प: क्या अंतर है?
बहुत से लोगों के मन में यह भ्रम होता है कि ‘नाग’ और ‘सर्प’ एक ही हैं या भिन्न। वास्तव में, इन दोनों शब्दों को कभी-कभी एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, परन्तु गीता, महाभारत और पुराणों में इनके बीच सूक्ष्म भेद दिखाई देता है।
भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 28-29) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
“सर्पाणामस्मि वासुकिः। अनन्तश्चास्मि नागानां।”
यहाँ श्रीकृष्ण ने वासुकि को सर्पों में श्रेष्ठ कहा है और अनंत (शेषनाग) को नागों में महान बताया है — जिससे यह भिन्नता का संकेत मिलता है।
पुराणों के अनुसार, वासुकि और शेषनाग दोनों ही कश्यप ऋषि और कद्रू की संतानें हैं। कद्रू को सहस्र नाग पुत्र प्राप्त हुए थे, जिनमें से प्रमुख वासुकि, शेष, तक्षक, कर्कोटक, पद्म आदि हैं।
नागों की उत्पत्ति — पुराणों की दृष्टि से
श्रीमद्भागवत, महाभारत और स्कंदपुराण में नागों की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है।
- ब्रह्माजी के मानस पुत्र कश्यप ने कद्रू से विवाह किया।
- कद्रू के गर्भ से सहस्रों नाग उत्पन्न हुए।
- इन नागों के प्रमुख कुल — वासुकि, शेषनाग, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय आदि हैं।
शेषनाग को भगवान विष्णु की शय्या माना गया है, जबकि वासुकि को समुद्र मंथन की रस्सी और शिव के कंठ का भूषण बताया गया है।
नाग पंचमी का पौराणिक महत्व
1. समुद्र मंथन और वासुकि नाग (शिवपुराण व भागवत आधार)
प्रसंग: देवताओं और दैत्यों ने अमृत प्राप्ति हेतु मंदराचल पर्वत से समुद्र मंथन किया। रस्सी के रूप में वासुकि नाग का उपयोग किया गया।
श्लोक (भागवत पुराण, स्कंध 8, अध्याय 7):
“ततो मन्दरगिरिं कृत्वा मथनेऽम्बुधेरुच्छ्रितम्।
वासुकिं कूर्मरूपेण धारयामास माधवः॥”
अर्थ: मंदराचल को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी बनाकर भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुआ) रूप में उसे अपने पीठ पर धारण किया।
शिव और वासुकि का संबंध: शिवपुराण में उल्लेख है कि वासुकि नाग शिवजी के परमभक्त हैं और स्वयं उनके कंठ में विराजते हैं। इसीलिए नाग पंचमी पर वासुकि का स्मरण कर शिव का पूजन किया जाता है।
2. शेषनाग — ब्रह्मांड के संतुलन का आधार
श्लोक (भागवत पुराण, स्कंध 5, अध्याय 17):
“स एष अनन्तो भगवान् विष्णु-कालः सर्परूपधरो भुवनानि भीरुभिः
फणाभिरधिरोहन्तं परिरक्षति॥”
अर्थ: यह अनंत शेष ही हैं जो भगवान विष्णु के स्वरूप हैं। वे अपने फनों पर सम्पूर्ण लोकों को धारण करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
शेषनाग को अनंत भी कहा गया है। वे सृष्टि के आधार हैं, और उनके फनों पर ही पृथ्वी संतुलित है।
3. महाभारत में नागों की भूमिका
भीम का नागलोक जाना
भीम को जब दुर्योधन ने विष देकर नदी में फेंका, तब वे नागलोक पहुँचे। वहां वासुकी नाग के सहयोग से उनका बल और भी बढ़ गया।
श्लोक (महाभारत, आदिपर्व):
“तत्र नागान्यगृह्णीत प्रीताः कालेन ते भृशम्।
वासुकिस्तं सुसंस्कृत्य वलिष्ठं चाप्यकारयत्॥”
अर्थ: नागों ने भीम को अपनाया और वासुकि ने उन्हें अमृत के समान दिव्य भोजन करवा कर बलवान बना दिया।
अर्जुन और उलूपी विवाह
महाभारत में वर्णन है कि वनवास के दौरान अर्जुन को नागकन्या उलूपी ने नागलोक में आमंत्रित किया और उनसे विवाह किया। उनके पुत्र का नाम इरावन था।
4. भगवान श्रीकृष्ण और कालिया नाग
प्रसंग: यमुना नदी में कालिया नाग का विष फैला हुआ था। श्रीकृष्ण ने उस पर नृत्य करके उसे पराजित किया।
श्लोक (भागवत पुराण, स्कंध 10, अध्याय 16):
“कृष्णस्तं पृष्ठतो नागं कृत्वा चरमपृष्ठकम्।
ननर्त तमसौ शैलं मर्दयन्निव वज्रिभिः॥”
अर्थ: भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग के फनों पर नृत्य करके उसे पराजित किया जैसे इन्द्र अपने वज्र से पर्वत को मर्दित करता है।
श्लोक (अध्याय 16):
“पत्नीः प्रसादयामासुः श्रीकृष्णं शरणं ययुः।”
अर्थ: कालिया की पत्नियों ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की और उन्होंने कालिया को क्षमा कर दिया।
नाग पंचमी का आध्यात्मिक संदेश
नाग पंचमी केवल पूजन का पर्व नहीं, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, जीवदया और प्राकृतिक संतुलन के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी की याद भी दिलाता है। नागों को देवस्वरूप मानकर उनकी पूजा करना इस बात का प्रतीक है कि हिन्दू संस्कृति में हर जीव-जंतु में ईश्वर का अंश देखा जाता है।
नाग पंचमी की पूजा विधि
पूजन सामग्री:
- मिट्टी/तांबे/कांसे की नाग प्रतिमा
- दूध, चंदन, हल्दी, सिंदूर
- अक्षत (चावल), फूल, दीपक, अगरबत्ती
- मिठाई, फल, जल पात्र, सुपारी, नारियल
पूजन विधि:
- नाग प्रतिमा को जल से स्नान कराएँ।
- हल्दी, चंदन और सिंदूर लगाएँ।
- दूध और जल से अभिषेक करें।
- ‘ॐ नागराजाय नमः’ मंत्र का जाप करें।
- दीप, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
- नाग पंचमी की कथा का पाठ करें।
- पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें।
विशेष सुझाव:
- सांपों को दूध चढ़ाते समय ध्यान रखें कि कोई हिंसा न हो।
- पर्यावरण और सर्प संरक्षण का संकल्प लें।
चंद्रेश्वर नाग मंदिर, उज्जैन — सर्पपूजन की अद्भुत परंपरा का केन्द्र
भारत में नागों की पूजा की परंपरा प्राचीन काल से रही है और इस परंपरा का एक विलक्षण प्रतीक है उज्जैन स्थित चंद्रेश्वर नाग मंदिर। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर परिसर की तीसरी मंजिल पर स्थित है, जो सामान्यतः पूरे वर्ष बंद रहता है। परंतु श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, यानी नाग पंचमी के दिन, यह मंदिर रात्रि 12 बजे से अगले 24 घंटे के लिए सार्वजनिक दर्शनार्थ खोला जाता है।
इस मंदिर की विशेषता है — शिव परिवार का एक दुर्लभ स्वरूप। यहां भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश एक साथ दशमुखी नाग की शैय्या पर विराजमान हैं। यह दृश्य अत्यंत दुर्लभ और अनुपम है, क्योंकि इस रूप में शिव-पार्वती नाग-शैय्या पर स्थित होकर विष्णु रूप का बोध कराते हैं।
इस मंदिर के दर्शन को लेकर मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां आकर श्रद्धा से दर्शन करता है, वह सर्पदोष, कालसर्प योग, और नाग जन्य अन्य बाधाओं से मुक्त हो जाता है। नाग पंचमी के दिन इस मंदिर में हजारों भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं, जो श्रद्धा, विश्वास और समाधान की भावना के साथ दर्शन हेतु प्रतीक्षा करते हैं।
एक प्रचलित पौराणिक मान्यता के अनुसार — सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया और आज्ञा दी कि वे महाकाल वन में निवास करें। यही कारण है कि चंद्रेश्वर नाग मंदिर को तक्षक नाग की तपस्थली और शिव कृपा का केन्द्र माना जाता है।
यह मंदिर न केवल नागपूजन की परंपरा का केन्द्र है, बल्कि यह दर्शाता है कि सर्पों के प्रति सम्मान, संपूर्ण सृष्टि में सामंजस्य, और शिव तत्व की व्यापकता भारतीय संस्कृति की मूल भावना में रचे-बसे हैं।
भारत में नागों की पूजा — सांस्कृतिक विविधता और जीव संरक्षण का संदेश
नाग पंचमी भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रीति-रिवाजों और उत्साह के साथ मनाई जाती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बंगाल, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में इस दिन विशेष मेले और धार्मिक आयोजन होते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और कई स्थानों पर नागों की प्रत्यक्ष पूजा का आयोजन भी होता है।
यह पर्व भारत से परे नेपाल, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी श्रद्धा और पारंपरिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
आज के समय में नाग पंचमी न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक जैव विविधता, और सांपों के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक भी बन गई है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि:
“सर्प जैसे जीव केवल भय के नहीं, बल्कि सहअस्तित्व के प्रतीक हैं।”
नाग पंचमी का पर्व हमें प्रकृति और जीव-जंतुओं के बीच संतुलन और सम्मान का पाठ पढ़ाता है। इस दिन सांपों के आवासों की रक्षा, उनके प्रति करुणा, और उनके पारिस्थितिकी महत्व को समझना भी आवश्यक माना गया है। नागों की पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक व्यापक सांस्कृतिक संदेश है — कि प्रकृति के हर प्राणी में दैविकता है, और सभी का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।
निष्कर्ष: नाग पंचमी — परंपरा, पर्यावरण और प्रतीक
नाग पंचमी केवल नागों की पूजा का पर्व नहीं, यह हिन्दू संस्कृति की उस जीवित परंपरा का प्रतीक है जिसमें प्रत्येक प्राणी का सम्मान, संरक्षण और सह-अस्तित्व की भावना निहित है। यह दिन हमें सिखाता है कि:
“प्रकृति के प्रत्येक जीव — चाहे वह नाग हो या मानव — ब्रह्मांडीय संतुलन का भाग है।”
इस नाग पंचमी पर संकल्प लें:
- जीव-जंतुओं का सम्मान करें
- प्रकृति के साथ सामंजस्य रखें
- और सांपों को पूजें नहीं, समझें भी।