अजा एकादशी 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, नियम और महाराज हरिश्चंद्र की कथा

अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे पापनाशिनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि शास्त्रों में वर्णन है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से पूर्व जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

स्कंद पुराण में उल्लेख है—
“एकादश्याः प्रभावेण सर्वपापैः प्रमुच्यते।”
अर्थात, एकादशी के प्रभाव से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

अजा एकादशी 2025 की तिथि और मुहूर्त

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 18 अगस्त 2025, शाम
  • एकादशी तिथि समाप्त: 19 अगस्त 2025, दोपहर
  • व्रत पर्व मनाने की तिथि: 19 अगस्त 2025

अजा एकादशी के शुभ योग

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सिद्धि योग और शिववास योग जैसे मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योगों में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की भक्ति करने से जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पद्म पुराण में कहा गया है—
“एकादश्यां निराहारः कृतेऽयं मधुसूदन।
सर्वपापैः प्रमुच्येत व्रतं वैष्णवमुत्तमम्॥”

अजा एकादशी का महत्व

‘एकादशी व्रतानां मध्ये अजा नाम विशेषतः, पापौघं हरति देवी, सत्यं सत्यं वदाम्यहम्’
अर्थात, एकादशियों में अजा एकादशी विशेष मानी गई है। यह आत्मशुद्धि, पाप-क्षालन और धर्मस्थापन के लिए अत्यंत प्रभावी है।

अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि

अजा एकादशी की पूजा विधि श्रद्धा, संयम और नियमों के साथ सम्पन्न की जाती है। इस व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की संध्या से होती है। व्रती इस दिन केवल एक बार सात्विक भोजन करता है और लहसुन, प्याज जैसी तामसिक वस्तुएं पूरी तरह वर्जित रहती हैं।

पूजा के मुख्य चरण:

  1. एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. व्रत का संकल्प लें— “मैं आज भगवान विष्णु की कृपा के लिए अजा एकादशी का व्रत करूंगा।”
  3. घर के मंदिर या पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  4. पीले या रेशमी वस्त्र अर्पित करें, पीले पुष्प, तुलसी पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत और मौसमी फल चढ़ाएँ।
  5. विशेष रूप से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  6. दिनभर जप, ध्यान, धार्मिक कथा, और भजन-कीर्तन में समय बिताएँ।
  7. रात्रि में जागरण करें, जिससे पुण्य फल अनेक गुना बढ़ जाता है।

उपवास की तीन विधियाँ

  • निर्जल व्रत – भोजन और जल का पूर्ण त्याग।
    फलाहार व्रत – फल, दूध, मखाना आदि का सेवन।
  • जल-पान व्रत – केवल जल का सेवन।

व्रत के नियम

  • पूरे दिन मानसिक, शारीरिक और वाणी की शुद्धता बनाए रखें।
  • क्रोध, झूठ, कटु वाणी, छल, ईर्ष्या और हिंसा से दूर रहें।
  • अन्न, चावल, गेहूं, दाल, मांस, मदिरा और तामसिक आहार से परहेज करें।
  • दिनभर भगवान विष्णु के नामों का जप करें— “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “श्री विष्णवे नमः”।
  • विष्णु सहस्रनाम, भगवद्गीता, या श्रीमद्भागवत का पाठ करें।

पारण का समय और विधि

अजा एकादशी का पारण 20 अगस्त 2025 को सुबह 05:53 से 08:29 बजे के बीच किया जाएगा।

  • पारण से पहले भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पित करें।
  • फिर दान-दक्षिणा दें और सात्विक भोजन से व्रत खोलें।
  • ध्यान रखें— द्वादशी तिथि के भीतर पारण करना आवश्यक है।

अजा एकादशी की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट हरिश्चंद्र सत्य, धर्म और त्याग के प्रतीक माने जाते थे। उनका राज्य न्याय और मर्यादा का जीवंत उदाहरण था, लेकिन एक दिन अदृश्य प्रारब्ध के प्रभाव से उन्हें कठोर परीक्षा से गुजरना पड़ा। उन्होंने अपना सारा राज्य, धन, पत्नी और पुत्र तक त्याग दिए और अंत में स्वयं को एक चांडाल को दास रूप में बेच दिया। 

श्मशान भूमि में मृतकों का अंतिम संस्कार कराते हुए उनका जीवन बीतने लगा, परंतु सत्य का मार्ग उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। एक दिन दुख से व्याकुल होकर वे अकेले बैठे थे, तभी गौतम ऋषि वहाँ आए। राजा ने उन्हें अपनी व्यथा सुनाई, तो ऋषि ने कहा कि सात दिन बाद आने वाली भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने से उनके समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। 

ऋषि अंतर्ध्यान हो गए और राजा ने उनके वचनों को जीवन का अंतिम प्रकाश मानकर श्रद्धापूर्वक व्रत का संकल्प लिया। जब अजा एकादशी आई, तो उन्होंने पूरे नियम से उपवास, रात्रि जागरण और भगवान विष्णु की पूजा की। अगले दिन चमत्कार हुआ। 

स्वर्ग से पुष्प वर्षा होने लगी, उनका मृत पुत्र जीवित हो गया, पत्नी पुनः सजी-धजी सामने खड़ी थी और राज्य भी उन्हें वापिस मिल गया। इस व्रत के प्रभाव से न केवल उनका भौतिक जीवन सुधर गया, बल्कि उन्होंने भीतर से भी जीना सीखा। अंततः वे अपने परिवार सहित स्वर्ग को प्राप्त हुए, और अजा एकादशी की महिमा अमर हो गई।

Scroll to Top