करवा चौथ 2025 : करवा का महत्व और करवा की पौराणिक कथा

विवाह का बंधन केवल सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक संकल्प है। भारतीय संस्कृति में स्त्री अपने पति के कल्याण और दीर्घायु के लिए सदियों से तप, उपवास और व्रत करती आई है। इन्हीं में से एक अत्यंत लोकप्रिय व्रत है करवा चौथ, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत की विवाहित महिलाएँ श्रद्धा और भक्ति से करती हैं।
2025 में करवा चौथ का पावन पर्व 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है, जिसमें सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला उपवास किया जाता है। इस व्रत की महिमा केवल पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास में ही नहीं, बल्कि इसमें छिपे दार्शनिक और आध्यात्मिक संदेश में भी निहित है।
क्या है करवा?
करवा चौथ का नाम ही अपने रहस्य को समेटे हुए है। “करवा” एक मिट्टी का विशेष बर्तन होता है, जिसे परंपरागत रूप से काली मिट्टी में शक्कर की चाशनी मिलाकर तैयार किया जाता है। प्राचीन काल में मिट्टी के बने बर्तन ही धार्मिक अनुष्ठानों में प्रमुखता से प्रयुक्त होते थे, क्योंकि वे प्राकृतिक और पवित्र माने जाते थे।
आज भी करवा चौथ की पूजा में दो करवे बनाए जाते हैं। इन पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और आटे व हल्दी से स्वस्तिक का चिन्ह अंकित किया जाता है।
- एक करवे में जल भरा जाता है, जिसका उपयोग पूजा और अर्घ्य देने में होता है।
- दूसरे करवे में दूध और चाँदी या ताँबे का सिक्का डालकर रखा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, जब बहू पहली बार यह व्रत करती है तो सास उसे करवा देती है, और बदले में बहू भी अपनी सास को करवा देती है। इसे “बायना” कहा जाता है। सास वह जल पौधे को अर्पित कर देती है और अपने करवे के जल से चंद्रमा को अर्घ्य देती है।
मिट्टी का करवा विशेष इसलिए भी है क्योंकि यह जल और आस्था दोनों का प्रतीक है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि मिट्टी का पात्र जल को पवित्र बनाए रखता है और उसका विसर्जन भी प्रकृति के अनुरूप होता है। यही कारण है कि इसे अधिक शुभ माना जाता है।
करवा नामक महिला की कथा
करवा चौथ के नाम की उत्पत्ति एक प्राचीन कथा से जुड़ी है। पद्म पुराण और लोककथाओं में वर्णन आता है कि तुंगभद्रा नदी के तट पर करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री रहती थी। उसका जीवन अपने वृद्ध पति के प्रति सेवा, समर्पण और निष्ठा से परिपूर्ण था।
एक दिन उसका पति नदी में कपड़े धो रहा था, तभी एक भयंकर मगरमच्छ ने उसके पैर दबोच लिए। पति की व्याकुल चीख सुनकर करवा तत्काल वहाँ पहुँची। उसने निर्भीक होकर कच्चे धागे से उस मगरमच्छ को बाँध लिया। यह घटना स्त्री के साहस और संकल्प का अद्भुत उदाहरण है।
करवा सीधे यमराज के पास पहुँची और अपने पति की रक्षा की प्रार्थना की। यमराज ने प्रारंभ में यह कहकर टालना चाहा कि उसके पति की आयु समाप्त हो चुकी है। लेकिन करवा ने दृढ़ स्वर में कहा कि यदि उसके पति को जीवनदान न मिला, तो वह स्वयं यमराज को श्राप दे देगी।
करवा की पतिव्रता और दृढ़ संकल्प से यमराज भी विचलित हो उठे। उन्होंने मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया। तभी से कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का आरंभ हुआ।
स्त्री की आध्यात्मिक शक्ति
करवा चौथ केवल पति की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला व्रत नहीं है, बल्कि यह स्त्री की आध्यात्मिक शक्ति और संकल्प का पर्व भी है। महाभारत में सावित्री और सत्यवान की कथा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सावित्री ने अपने अटूट व्रत और भक्ति से स्वयं यमराज को पराजित कर दिया और अपने पति को जीवनदान दिलाया।
इसी प्रकार शिव पुराण और देवी भागवत पुराण में वर्णित है कि पार्वती ने भी कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इन प्रसंगों से स्पष्ट है कि स्त्री का संकल्प लौकिक सीमाओं को लांघकर अलौकिक तक को प्रभावित कर सकता है।
करवा चौथ इस दर्शन का उत्सव है। उपवास, पूजा और कथा के माध्यम से स्त्री अपने पति के जीवन को ईश्वर की शरण में रखती है। यह व्रत यह विश्वास स्थापित करता है कि स्त्री का त्याग और भक्ति व्यक्तिगत न होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ा होता है, और उसका संकल्प सृष्टि के नियमों तक को परिवर्तित कर सकता है।
करवा चौथ 2025 : एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव
2025 में जब 10 अक्टूबर को महिलाएँ निर्जला उपवास कर चंद्रमा को अर्घ्य देंगी, तो वे न केवल पति की लंबी आयु की कामना करेंगी, बल्कि भारतीय संस्कृति के उस अमर आदर्श को पुनः जीवित करेंगी, जिसमें स्त्री का प्रेम, साहस और संकल्प सबसे महान शक्ति माना गया है।
करवा चौथ का यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि विवाह केवल सामाजिक संस्था नहीं, बल्कि आत्माओं का पवित्र बंधन है, जिसे नारी अपनी भक्ति और तपस्या से जीवन भर मजबूत बनाती है।