काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए भारत के प्रसिद्ध नाग मंदिर | पूजा विधि और संपूर्ण जानकारी

काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए भारत के प्रसिद्ध नाग मंदिर

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ‘काल सर्प दोष’ को एक ऐसा विशेष ग्रह योग माना गया है, जो जातक के जीवन में अनेक प्रकार की मानसिक, सामाजिक और आर्थिक बाधाओं का कारण बन सकता है। यह योग तब बनता है जब कुंडली के सभी सात ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं। इसका प्रभाव हर व्यक्ति पर अलग-अलग होता है, लेकिन सामान्यतः यह रुकावटें, असफलता, भय, पारिवारिक अशांति, संतान संबंधी समस्याएँ और वैवाहिक जीवन में बाधाएँ उत्पन्न करता है।

शास्त्रों में इस दोष के निवारण के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें सबसे प्रभावी उपाय माना गया है—नाग देवताओं की पूजा। ‘पद्म पुराण’ और ‘स्कन्द पुराण’ जैसे ग्रंथों में नाग पूजा का विशेष उल्लेख मिलता है, विशेषकर श्रावण मास में या नाग पंचमी के दिन की गई नाग पूजा काल सर्प दोष शांति के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।

नाग पूजन और काल सर्प दोष

नाग देवता को हिन्दू धर्म में पृथ्वी के अधिष्ठाता और कुण्डलिनी शक्ति के रक्षक के रूप में जाना जाता है। ‘मनुस्मृति’ और ‘महाभारत’ में नाग जाति के प्रमुखों—शेषनाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक आदि का वर्णन आता है। शास्त्रों के अनुसार, राहु और केतु को भी नागों की श्रेणी में माना गया है, इसीलिए इनसे संबंधित दोष की शांति हेतु नाग पूजा की जाती है।

भारत के प्रमुख नाग मंदिर जहाँ काल सर्प दोष की शांति होती है

1. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक, महाराष्ट्र

त्र्यंबकेश्वर मंदिर नासिक जिले में ब्रह्मगिरी पर्वत के निकट स्थित है और यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे विशेष रूप से पितृ दोष और काल सर्प दोष शांति के लिए सर्वोत्तम स्थल माना जाता है। यहाँ की “कालसर्प शांति पूजा” तीन स्तरों पर की जाती है – शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धिकरण के लिए। यह पूजा आमतौर पर अनुभवी पंडितों द्वारा सुबह 7 बजे से 10 बजे के बीच विशेष वेद मंत्रों के साथ सम्पन्न कराई जाती है। पूजा के अंत में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज भी करवाया जाता है। साथ ही यहाँ कुंडलिनी जागरण के लिए ‘नाग बालाजी उपासना’ भी की जाती है।

2. श्रीकालहस्ती मंदिर, आंध्र प्रदेश

यह मंदिर चित्तूर जिले के श्रीकालहस्ती नामक नगर में स्थित है और दक्षिण भारत में राहु-केतु दोष निवारण का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल माना जाता है। मंदिर के शिवलिंग को ‘वायुपुरुष लिंग’ कहा जाता है, जो पंचतत्वों में वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ की पूजा विशेष ‘राहु-केतु पूजन’ विधि के अनुसार की जाती है, जो रुद्राभिषेक, नागरूप द्रव्य अर्पण, दीपदान, और विशेष अर्घ्य के साथ सम्पन्न होती है। इस पूजा के लिए जातक का जन्मकुंडली विवरण अनिवार्य माना जाता है। यहाँ राहुकाल में पूजा करने से इसका प्रभाव अधिक माना जाता है।

3. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, द्वारका, गुजरात

द्वारकाधीश मंदिर के समीप स्थित यह शिवालय नागदेवता की विशेष पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ शिवलिंग के चारों ओर नाग की मूर्तियाँ बनी हुई हैं, जो इस मंदिर को कालसर्प दोष निवारण का एक प्राचीन केंद्र बनाती हैं। यहाँ नाग पंचमी के दिन भव्य अनुष्ठान और विशाल नाग पूजन महोत्सव आयोजित होता है। श्रद्धालु यहाँ दूध, तिल, कुश, और गंगाजल से नागदेवता का अभिषेक करते हैं। यह स्थान नाग मंत्र साधना के लिए भी जाना जाता है।

4. मानारशाला मंदिर, केरल

यह मंदिर केरल के हरिपद कस्बे में स्थित है और इसे नाग पूजा का वैश्विक केंद्र कहा जाता है। लगभग 16 एकड़ के क्षेत्र में फैले इस मंदिर परिसर में 30,000 से अधिक नाग प्रतिमाएं स्थापित हैं। मान्यता है कि यहाँ की नाग पूजा संतान प्राप्ति और कालसर्प दोष निवारण के लिए अचूक मानी जाती है। यहाँ का मुख्य आकर्षण यह है कि इसकी मुख्य पुजारिन एक महिला होती हैं, जो देवी माँ के रूप में नागों की पूजा कराती हैं। ‘उरुलु नाट्टल’ और ‘नोर्पायसू’ यहाँ के विशेष धार्मिक आयोजन हैं, जो संतानहीन दंपतियों के लिए आयोजित किए जाते हैं।

5. नागवासुकी मंदिर, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

संगम के तट पर स्थित यह मंदिर ‘नाग पंचमी’ के अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनता है। मंदिर में स्थापित नागदेवता की प्राचीन मूर्ति के साथ-साथ शिवलिंग भी विराजमान है। यहाँ पंचामृत, बेलपत्र, दूध, तिल और श्वेत पुष्प अर्पण कर नाग पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि यहां की पूजा अशुभ ग्रह योगों और विशेष रूप से कालसर्प दोष को शांत करने में अत्यंत सहायक होती है। यहाँ वार्षिक मेला भी लगता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु भाग लेते हैं।

6. नागनाथ मंदिर, हिंगोली, महाराष्ट्र

नागनाथ मंदिर महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में स्थित है और शिव-नाग एकता के प्राचीन प्रतीकों में से एक माना जाता है। यह मंदिर ‘नागबाबा मंदिर’ नाम से भी प्रसिद्ध है। यहाँ विशेष नाग मूर्तियाँ शिवलिंग के चारों ओर प्रतिष्ठित हैं और कालसर्प दोष के शमन के लिए विशेष ‘नागबाल यज्ञ’, ‘मृत्युंजय जाप’, और ‘राहु-केतु तिल होम’ का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर में पूजा के बाद नाग-नागिन की जोड़ी को नदी में प्रवाहित करने की परंपरा भी है।

काल सर्प दोष शांति की पूजा विधि (सारांश)

  • वस्त्र: पूजा में सफेद या पीले वस्त्र धारण करना श्रेष्ठ माना जाता है।
  • सामग्री: नाग प्रतिमा, दूध, चंदन, कुशा, तिल, पंचामृत, सफेद पुष्प, बेलपत्र, नाग-नागिन की जोड़ी की मूर्ति।
  • मंत्र:
    • “ॐ नमः शिवाय”
    • “ॐ राहवे नमः”
    • “ॐ केतवे नमः”
    • “नागायै नमः”
  • विशेष क्रिया: नाग प्रतिमा का बहते जल में विसर्जन, शिवलिंग पर नाग का अभिषेक, ब्राह्मणों को अन्न-वस्त्र दान और गौसेवा।

काल सर्प दोष और नाग पंचमी

नाग पंचमी के दिन की गई पूजा काल सर्प दोष की शांति के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। ‘स्कंद पुराण’ के अनुसार, इस दिन नाग पूजा करने से विष प्रभाव, भय, अकाल मृत्यु और संतान संबंधी दोष शांत होते हैं।

निष्कर्ष

काल सर्प दोष एक ऐसा योग है जो व्यक्ति के जीवन में कई मानसिक, आध्यात्मिक और भौतिक संकट लाता है, लेकिन यदि श्रद्धा और विधिपूर्वक नाग देवताओं की पूजा की जाए, तो इस दोष का प्रभाव काफी हद तक कम किया जा सकता है। भारत के प्रसिद्ध नाग मंदिरों में जाकर, शास्त्रीय विधि से की गई पूजा न केवल राहु-केतु के दुष्प्रभाव को शांत करती है, बल्कि मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और संतान सौभाग्य का द्वार भी खोलती है।

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